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पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई को लेकर नीतीश सरकार के फैसले पर उठे सवाल, देशभर के दलित नेताओं ने खोला मोर्चा

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पटना, 23 अप्रैल। बिहार में नीतीश सरकार की ओर से पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के लिए नियमों में फेरबदल किए जाने के बाद देशभर के दलित नेताओं के तरफ से इसके खिलाफ आवाज भी उठने लगे हैं।

एससी-एसटी आयोग की अध्यक्ष इंदु बाला ने कहा – नीतीश कुमार दलित विरोधी

बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के साथ-साथ एससी-एसटी आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष इंदु बाला ने भी पूर्व सांसद आनंद मोहन को जेल से रिहा किए जाने के फैसले पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी के हत्या मामले में जेल में बंद आरोपित को रिहा करने के फैसले पर बिहार सरकार एक बार जरूर पुनर्विचार करे। इंदु बाला ने ट्वीट कर नीतीश कुमार को दलित विरोधी करार दे दिया है।

बिहार सरकार फैसले पर पुनर्विचार करे – मायावती

बसपा प्रमुख मायावती ने ट्वीट में लिखा, ‘बिहार की नीतीश सरकार द्वारा, आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) महबूबनगर के रहने वाले गरीब दलित समाज से आईएएस बने बेहद ईमानदार जी. कृष्णैया की निर्दयता से की गई हत्या मामले में आनंद मोहन को नियम बदल कर रिहा करने की तैयारी देशभर में दलित विरोधी निगेटिव कारणों से काफी चर्चाओं में है। आनंद मोहन बिहार में कई सरकारों की मजबूरी रहे हैं, लेकिन गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैया की हत्या मामले को लेकर नीतीश सरकार का यह दलित विरोधी व अपराध समर्थक कार्य से देशभर के दलित समाज में काफी रोष है। चाहे कुछ मजबूरी हो, किन्तु बिहार सरकार इस पर जरूर पुनर्विचार करे।’

वहीं, एससी-एसटी आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष इंदु बाला ने सीधे तौर पर सरकार को दोषी माना है। उन्होंने कहा है कि बिहार में अपराधी को बचाने के लिए कानून तक बदल डालेंगे। गोपालगंज डीएम हत्या मामले में आनंद मोहन पर केस चला। उन्हें जेल से बाहर निकालने के लिए संविधान में संशोधन किया गया। केस को कैसे सरकार चेंज कर सकती है, पता नहीं। आनंद मोहन को बचाने के लिए सरकार क्या-क्या कर सकती है, ये समझ से पड़े हैं। ऐसे में क्या अनुसूचित जाति के लोग खुद को बिहार में सुरक्षित महसूस करेंगे?

इंदु बाला ने कहा, ‘सरकार कानून बनाती है कि अपराध कम हो न कि अपराध को बढ़ावा दिया जाए। इस तरह से कानून बदल देंगे तो अपराधी बेखौफ होकर घूमेंगे ही। फिर कैसा संशोधन करते हो आप यह जांच का विषय है। आयोग इसका संज्ञान लेगा और सरकार को नोटिस करेंगे। हमें जवाब चाहिए कि किस नियम के तहत इसको बदला गया और बदले तो क्या आधार रहा?’

गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश के (अब तेलंगाना) महबूबनगर के रहने वाले दलित समाज के बेहद ईमानदार आईएएस जी. कृष्णैया की पांच दिसम्बर, 1994 को बिहार में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में पटना की निचली अदालत ने 2007 में पूर्व सांसद आनंद मोहन को फांसी की सजा दी थी। इसके बाद पटना हाई कोर्ट ने इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। आनंद मोहन अब भी जेल में हैं। बताया जा रहा है कि उनकी सजा की अवधि पूरी हो चुकी है। तीन मई को आनंद मोहन के बेटे की शादी है। इसके लिए वह पैरोल पर हैं। वहीं नीतीश सरकार ने नियम में कुछ बदलाव किया है, जिसके तहत अब आनंद मोहन की रिहाई की चर्चा भी जोर पकड़ रही है।

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