नई दिल्ली, 2 दिसंबर। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि डॉ. भीम राव आम्बेडकर समाज में नैतिक चेतना को जगाने के पक्षधर थे और उनका कहना था कि केवल कानून से ही अधिकार सुरक्षित नहीं रह सकते बल्कि इसके लिए नैतिक और सामाजिक चेतना बहुत जरूरी है। उन्होंने गुरुवार को यहां विज्ञान भवन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय आम्बेडकर सम्मेलन के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि डॉ. आम्बेडकर ने हमेशा अहिंसा और संवैधानिक माध्यमों की वकालत की।
अनुसूचित जाति और जनजातियों के हितों की रक्षा के लिए संविधान में कई प्रावधान
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि संविधान में ऐसे कई प्रावधान हैं, जिनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा की बात कही गई है। संविधान के अनुच्छेद 46 में कहा गया है कि सरकार, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक विकास पर विशेष रूप से ध्यान दे। इस अनुच्छेद में सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह इन जातियों को सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से रक्षा प्रदान करे।
LIVE: President Kovind addresses the inauguration ceremony of the International Ambedkar Conclave-2021 at Vigyan Bhavan https://t.co/srhnRRjfng
— President of India (@rashtrapatibhvn) December 2, 2021
उन्होंने कहा कि संविधान के निर्देशानुसार इन प्रवृत्तियों की रोकथाम के लिए अनेक संस्थाएं कार्यरत हैं। इस दिशा में बहुत कुछ किया जा चुका है और बहुत कुछ किया जाना अब भी बाकी है।
पिछड़े वर्ग के अधिकतर लोगों को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं
राष्ट्रपति ने कहा कि पिछड़े वर्गों के अधिकतर लोगों को अपने अधिकारों और कल्याण कार्यक्रमों की जानकारी नहीं है। ऐसी स्थिति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबधित विधायकों तथा सांसदों के मंचों के सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वे इस बाबत उन्हें जागरूक करें। इन कार्यों से वे डॉ. आम्बेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं।
रामनाथ कोविंद ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विधायकों और सांसदों द्वारा इस सम्मेलन के आयोजन की सराहना की। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि इस सम्मेलन में शिक्षा, उद्यमिता, नवाचार और आर्थिक विकास के अतिरिक्त संवैधानिक अधिकारों पर विशेष ध्यान दिया गया है।