पटना, 22 जून। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में शुक्रवार, 23 जून को विपक्षी दलों की होने वाली बैठक को लेकर सियासत तेज हो गई है। बिहार में जन सुराज यात्रा पर निकले प्रशांत किशोर ने कहा है कि सिर्फ चाय-नाश्ता करने से विपक्षी एकता होनी होती तो 20 साल पहले हो गई होती।
प्रशांत किशोर ने तंज कसते हुए कहा कि अंधों में काना राजा नीतीश का हाल वही होगा, जो चंद्रबाबू नायडू का हुआ था। हास्यास्पद है कि जीरो एमपी वाली राजद देश का पीएम तय कर रही है। नीतीश कुमार क्या कर रहे हैं, इस पर ज्यादा बोलने का कोई मतलब नहीं है। नीतीश आज जिस भूमिका में हैं, पांच वर्ष पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी वैसी ही भूमिका में थे।
उन्होंने कहा कि चंद्रबाबू नायडू उस समय बहुमत की सरकार चला रहे थे, जबकि नीतीश कुमार तो 42 विधायकों के साथ लंगड़ी सरकार चला रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू उस दौर में पूरे देश का दौरा करके विपक्ष को एकजुट कर रहे थे। इसका नतीजा हुआ कि आंध्र प्रदेश में उनके सांसद घटकर तीन रह गए, सिर्फ 23 विधायक जीते और वे प्रदेश की सत्ता से ही बाहर हो गए।
नीतीश कुमार को बिहार की चिंता करनी चाहिए, उनका खुद का ठिकाना नहीं
पीके ने कहा कि नीतीश कुमार को बिहार की चिंता करनी चाहिए। उनका खुद का ठिकाना नहीं है। जिस पार्टी के बिहार में जीरो एमपी हैं, वह देश का प्रधानमंत्री तय कर रही है और जिस पार्टी का खुद का ठिकाना नहीं है वो देश की दूसरी पार्टियों को इकट्ठा कर रही है।
उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार से ये पूछना चाहिए कि ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ काम करने को तैयार हैं? क्या नीतीश कुमार और लालू टीएमसी को बिहार में एक भी सीट देने को तैयार हैं? पश्चिम बंगाल में नीतीश कुमार को पूछता कौन है? नीतीश कुमार का हाल अंधों में काना राजा जैसा हो गया है। लिखकर रख लीजिए, नीतीश कुमार का भी वही हाल होगा, जो चंद्रबाबू नायडू का हुआ था।