मुंबई, 1 अगस्त। संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के पौत्र और वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की आलोचना की है, जिसमें राज्यों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति देने का फैसला किया गया है।
जो पहले से लाभान्वित हैं, उन्हें क्रीमी लेयर में लाकर कोटे से बाहर करें – SC
उल्लेखनीय है कि CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सात जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को इस मामले में अहम फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत के अनुसार आरक्षण की एकरूपता के लिए यह जरूरी है कि SC/ST कोटे के अंदर वंचित समूह की पहचान कर उन्हें वास्तविक आरक्षण का लाभ दिया जाए और जो लोग पहले से लाभान्वित हैं, उन्हें क्रीमी लेयर में लाकर कोटे से बाहर किया जाय।
अंबेडकर ने अदालत के फैसले के गंभीर परिणामों की चर्चा की
प्रकाश अंबेडकर ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि संविधान पीठ का यह फैसला संविधान में निहित आरक्षण के अक्षरशः और मूल भावना के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि यदि SC/ST समूहों का कोई भी उप-वर्गीकरण किया जाना है तो यह संसद द्वारा पारित नियमों के अनुसार किया जाना चाहिए। अदालत के फैसले के गंभीर परिणामों की चर्चा करते हुए अंबेडकर ने कहा कि यह केंद्रीय विषय है न कि राज्यों का विषय है।
‘सामान्य श्रेणी में उप-वर्गीकरण क्यों नहीं, जहां एक ही समुदाय का एकाधिकार‘
प्रमुख अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में प्रकाश अंबेडकर ने कहा कि राज्य अनुसूचित जाति-जनजाति का उप-वर्गीकरण करने के लिए उपयुक्त अथॉरिटी नहीं है। यदि यह जरूरी भी है तो यह संसद द्वारा ही किया जाना चाहिए। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि अगर SC/ST और OBC कैटगरी में यह उप वर्गीकरण उचित है तो सामान्य श्रेणी में क्यों नहीं, जहां एक ही समुदाय के लोगों का एकाधिकार है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे का समाधान आरक्षित और सामान्य दोनों श्रेणियों सहित सभी वर्गों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।
एक जज की असहमति का भी अध्ययन किया जाना जरूरी – चंद्रशेखर आजाद
वहीं भीम आर्मी के संस्थापक और आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने कहा, ‘मैंने अब तक सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला नहीं पढ़ा है। एक जज ने असहमति जताई है, उसका भी अध्ययन किया जाना चाहिए। यह देखा जाना बाकी है कि क्या अनुच्छेद 341 (जो राष्ट्रपति को एससी समुदायों की सूची बनाने का अधिकार देता है) का उल्लंघन किया गया है।’
सामाजिक-आर्थिक जाति सर्वेक्षण के बिना ऐसा करना ठीक नहीं
नगीना से सांसद आजाद ने कहा, ‘मेरा मानना है कि बिना सामाजिक-आर्थिक जाति सर्वेक्षण के ऐसा करना ठीक नहीं होगा। संविधान सभा की बहसें अवश्य पढ़नी चाहिए। पद मिलने से किसी दलित की सामाजिक स्थिति नहीं बदल जाती।’
गौरतलब है कि सात जजों की संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के तहत कोटे के अंदर कोटा का उप वर्गीकरण करने की अनुमति दे दी है और कहा है कि राज्यों के पास इन कैटगरी की वंचित जातियों के उत्थान के लिए SC/ST में उप-वर्गीकरण करने की शक्तियां हैं।
अपने फैसले में दलित जज जस्टिस बीआर गवई ने संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्यों को एससी और एसटी में ‘क्रीमी लेयर’ की पहचान करनी चाहिए तथा उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए। पीठ के दूसरे जज जस्टिस विक्रम नाथ ने भी इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए कहा कि जैसे ओबीसी कैटगरी पर क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू होता है, उसी तरह SC/ST कैटगरी में भी लागू होना चाहिए।