नई दिल्ली, 28 अगस्त। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुपोषण के खिलाफ अभियान से जुड़ने की अपील करते हुए कहा है कि कुपोषण की चुनौतियों से निबटने में सामाजिक जागरूकता से जुड़े प्रयास महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पीएम मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा कि असम के बोंगाई गांव में एक दिलचस्प परियोजना प्रोजेक्ट सम्पूर्णा चलाई जा रही है। इसका मकसद है कुपोषण के खिलाफ लड़ाई और इस लड़ाई का तरीका भी बहुत अनोखा है।
इसके तहत, किसी आंगनबाड़ी केंद्र के एक स्वस्थ बच्चे की मां, एक कुपोषित बच्चे की मां से हर सप्ताह मिलती है और पोषण से संबंधित सारी जानकारियों पर चर्चा करती है। यानी, एक मां, दूसरी मां की मित्र बन, उसकी मदद करती है, उसे सीख देती है। इस योजना की मदद से, इस क्षेत्र में, एक साल में, 90 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों में कुपोषण दूर हुआ है।
उन्होंने कहा ,“आप कल्पना कर सकते हैं, क्या कुपोषण दूर करने में गीत-संगीत और भजन का भी इस्तेमाल हो सकता है? मध्य प्रदेश के दतिया जिले में “मेरा बच्चा अभियान” शुरू किया गया। इस “मेरा बच्चा अभियान” में इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया। इसके तहत, जिले में भजन-कीर्तन आयोजित हुए, जिसमें पोषण गुरु कहलाने वाले शिक्षकों को बुलाया गया। एक मटका कार्यक्रम भी हुआ, इसमें महिलाएं, आंगनबाड़ी केंद्र के लिए मुट्ठी भर अनाज लेकर आती हैं और इसी अनाज से शनिवार को ‘बालभोज’ का आयोजन होता है। इससे आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ने के साथ ही कुपोषण भी कम हुआ है।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि कुपोषण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए एक अनोखा अभियान झारखंड में भी चल रहा है। झारखंड के गिरिडीह में सांप-सीढ़ी का एक खेल तैयार किया गया है। खेल-खेल में बच्चे, अच्छी और खराब आदतों के बारे में सीखते हैं। उन्होंने कहा कि वह कुपोषण से जुड़े इतने सारे अभिनव प्रयोगों के बारे में इसीलिये बता रहे हैं क्योंकि सब को , आने वाले महीने में, इस अभियान से जुड़ना है। सितम्बर का महीना त्योहारों के साथ-साथ पोषण से जुड़े बड़े अभियान को भी समर्पित है।
उन्होंने कहा, “हम हर साल एक से 30 सितम्बर के बीच पोषण माह मनाते हैं। कुपोषण के खिलाफ पूरे देश में अनेक रचनात्मक प्रयास किए जा रहे हैं। तकनीक का बेहतर इस्तेमाल और जन-भागीदारी भी, पोषण अभियान का महत्वपूर्ण हिस्सा बना है।” पीएम मोदी ने कहा कि देश में लाखों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मोबाइल देने से लेकर आंगनबाड़ी सेवाओं की पहुंच को निगरानी करने के लिए पोषण ट्रैकर भी शुरू किया गया है। सभी अस्परेशनल ज़िलों और पूर्वोत्तर के राज्यों में 14 से 18 साल की बेटियों को भी, पोषण अभियान के दायरे में लाया गया है।
कुपोषण की समस्या का निराकरण इन कदमों तक ही सीमित नहीं है – इस लड़ाई में, दूसरी कई और पहल की भी अहम भूमिका है। उदाहरण के तौर पर, जल जीवन मिशन को ही लें, तो भारत को कुपोषणमुक्त कराने में इस मिशन का भी बहुत बड़ा असर होने वाला है। कुपोषण की चुनौतियों से निपटने में, सामाजिक जागरूकता से जुड़े प्रयास, महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा, “मैं आप सभी से आग्रह करूँगा, कि आप, आने वाले पोषण माह में, कुपोषण को दूर करने के प्रयासों में हिस्सा जरुर लें।”