नई दिल्ली, 29 जून। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को कहा कि आपातकाल के दौरान न केवल संविधान की हत्या की गई बल्कि न्यायपालिका को भी गुलाम बनाये रखने का इरादा था। श्री मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’की 123 वीं कड़ी में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आपातकाल बहुत बड़ा संकट था जिसका देश की जनता ने जन भागीदारी से सामना किया।
उन्होंने कहा,“ देश पर आपातकाल थोपे जाने के 50 वर्ष कुछ दिन पहले ही पूरे हुए हैं। देशवासियों ने ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाया है। हमें हमेशा उन सभी लोगों को याद करना चाहिए, जिन्होंने आपातकाल का डटकर मुकाबला किया था। इससे हमें अपने संविधान को सशक्त बनाए रखने के लिए निरंतर सजग रहने की प्रेरणा मिलती है।”
पीएम मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और अटल बिहारी वाजपेई और पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम के वक्तव्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि आपातकाल के दौरान संविधान की हत्या की गयी। उन्होंने कहा कि यह न्यायपालिका को गुलाम बनाये रखने का इरादा था। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस दौरान लोगों को बड़े पैमाने पर प्रताड़ित किया गया था। इसके ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिन्हें कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
उन्होंने कहा,“ जॉर्ज फर्ना साहब को जंजीरों में बांधा गया था। अनेक लोगों को कठोर यातनाएं दी गईं। ‘मीसा’ के तहत किसी को भी ऐसे ही गिरफ्तार कर लिया जाता था। छात्रों को भी परेशान किया गया। अभिव्यक्ति की आजादी का भी गला घोंट दिया गया।” श्री मोदी ने कहा कि उस दौर में हजारों लोग गिरफ्तार किए गए और अमानवीय अत्याचार हुए। लेकिन ये भारत की जनता झुकी और टूटी नहीं तथा लोकतंत्र के साथ कोई समझौता उसने स्वीकार नहीं किया। अंत में जनता की जीत हुई और आपातकाल हटा लिया गया तथा आपातकाल थोपने वाले हार गए।
सेवा, समर्पण के अवसर का अनुष्ठान होती है तीर्थयात्राएं
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि तीर्थ यात्राएं‘ चलो बुलावा आया है ’का ही प्रवाह नहीं होता है बल्कि यह तीर्थयात्रियों और उनकी सेवा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए सेवा और समर्पण का एक अनुष्ठान भी होता है। पीएम मोदी ने रविवार को आकाशवाणी से प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 123वीं कड़ी में कहा कि तीर्थ यात्री के मन में सबसे पहले भाव आता है, ‘चलो, बुलावा आया है’ और यही भाव धार्मिक यात्राओं की आत्मा है।
उन्होंने कहा कि ये यात्राएं शरीर के अनुशासन का, मन की शुद्धि का, आपसी प्रेम और भाईचारे का, प्रभु से जुड़ने का माध्यम है। इनके अलावा, इन यात्राओं का एक और बड़ा पक्ष ये भी है कि यात्राएं सेवा के अवसरों का एक महाअनुष्ठान भी होती है। तीर्थ यात्रा होती हैं तो जितने लोग यात्रा पर जाते हैं उससे ज्यादा लोग तीर्थ यात्रियों की सेवा के काम में जुटते हैं। जगह-जगह भंडारे और लंगर और प्याऊ लगाये जाते हैं।
सेवा-भाव से ही मेडिकल कैम्प और सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है। इस काम मे कितने ही लोग अपने खर्च से तीर्थयात्रियों के लिए धर्मशालाओं की और रहने खाने की व्यवस्था करते हैं। प्रधानमंत्री ने कैलाश मानसरोवर यात्रा का जिक्र करते हुए कहा ‘लंबे समय के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा का फिर से शुभारंभ हुआ है। कैलाश मानसरोवर यानी भगवान शिव का धाम।
हिन्दू, बौद्ध, जैन, हर परंपरा में कैलाश को श्रद्धा और भक्ति का केंद्र माना गया है। साथियों, तीन जुलाई से पवित्र अमरनाथ यात्रा शुरू होने जा रही है और सावन का पवित्र महीना भी कुछ ही दिन दूर है। अभी कुछ दिन पहले हमने भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा भी देखी है। ओडिशा हो, गुजरात हो, या देश का कोई और कोना, लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होते हैं।
उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम, ये यात्राएं ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के भाव का प्रतिबिंब है। जब हम श्रद्धा भाव से, पूरे समर्पण से और पूरे अनुशासन से अपनी धार्मिक यात्रा सम्पन्न करते हैं तो उसका फल भी मिलता है। मैं यात्राओं पर जा रहे सभी सौभाग्यशाली श्रद्धालुओं को अपनी शुभकामनाएँ देता हूँ।’ उन्होंने कहा कि जो लोग सेवा भावना से इन तीर्थयात्राओं को सफल और सुरक्षित बनाने में जुटे हैं, उन्हें भी साधुवाद देता हूँ।

