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सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर – जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं और सिखों के नरसंहार की जांच के लिए एसआईटी की मांग

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नई दिल्ली, 28 मार्च। जम्मू-कश्मीर में वर्ष 1989 से 2003 के बीच हिन्दुओं और सिखों के कथित नरसंहार में शामिल अपराधियों की पहचान करने के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने की मांग के साथ सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है।

गैर सरकारी संगठन वी द सिटिजन्सने दायर की है याचिका

गैर सरकारी संगठन ‘वी द सिटिजन्स’ की ओर से दायर याचिका में उन हिन्दुओं और सिखों की जनगणना करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है, जो जम्मू-कश्मीर में ‘नरसंहारट के शिकार हुए या बचे हैं और अब भारत के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं। साथ ही उनके पुनर्वास की भी मांग की गई है।

याचिकाकर्ता ने जगमोहन और राहुल पंडिता की पुस्तकों पर किया है शोध

दरअरसल, याचिकाकर्ता ने कश्मीर के प्रवासियों की किताबों, लेखों और संस्मरणों को पढ़कर शोध किया है। उसने जिन प्रमुख पुस्तकों की जांच की है, उनमें पूर्व गर्वनर जगमोहन द्वारा लिखित ‘माई फ्रोजन टर्बुलेंस इन कश्मीर’ और राहुल पंडिता द्वारा ‘अवर मून हैज़ ब्लड क्लॉट्स’ शामिल हैं।

ये दो पुस्तकें वर्ष 1990 में भयानक नरसंहार और कश्मीरी हिन्दुओं और सिखों के पलायन का प्रत्यक्ष विवरण देती हैं। तत्कालीन सरकार और पुलिस प्रशासन की विफलता और अंततः संवैधानिक तंत्र के पूर्ण रूप से टूटने को उन पुस्तकों में समझाया गया है।

तत्कालीन सरकारों ने हिन्दुओं व सिखों के जीवन की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया

तत्कालीन सरकार और राज्य मशीनरी ने हिन्दुओं और सिखों के जीवन की सुरक्षा के लिए बिल्कुल भी काम नहीं किया और देशद्रोहियों को समर्थन दिया। नतीजतन आतंकवादी व असामाजिक तत्व पूरे कश्मीर पर नियंत्रण करने में सफल रहे। परिणामस्वरूप हिन्दू और सिख नागरिकों ने सरकार में विश्वास खो दिया और उन्हें भारत के अन्य हिस्सों में पलायन करने के लिए मजबूर किया गया। याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा के माध्यम से दायर याचिका में ये बातें कहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अब तक नहीं लिया है मामले का संज्ञान

जनहित याचिका में यह घोषित करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है कि जनवरी, 1990 में सभी संपत्तियों की बिक्री को, चाहे वह धार्मिक, आवासीय, कृषि, वाणिज्यिक, संस्थागत, शैक्षणिक या कोई अन्य अचल संपत्ति हो, शून्य घोषित किया जाए। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने अब तक इस मामले का संज्ञान नहीं लिया है, इसीलिए अदालत के समक्ष यह मामला अभी लंबित है।