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पंचतत्व में विलीन हुए ‘पद्म विभूषण’ पंडित छन्नूलाल मिश्र, ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ के साथ दी गई अंतिम विदाई, पौत्र ने दी मुखाग्नि

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वाराणसी, 2 अक्टूबर। भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान हस्ताक्षर ‘पद्म विभूषण’ पंडित छन्नूलाल मिश्र का उनकी कर्मस्थली यानी वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर गुरुवार को देर शाम पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। जवानों ने उन्हें ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ दिया और उनके पौत्र राहुल मिश्र ने मुखाग्नि दी।

गौरतलब है कि पंडित छन्नू लाल मिश्र का गुरुवार को तड़के मिर्जापुर में निधन हुआ था, जहां अपनी बेटी डॉ. नम्रता मिश्रा के आवास पर अंतिम सांस ली। दोपहर में उनका पार्थिव शरीर मिर्जापुर से वाराणसी लाया गया, जहां देर शाम मर्णिकर्णिका घाट पर वह पंचतत्व में विलीन हुए।

आजमगढ़ के रहने वाले छन्नूलाल ने बनारस को बनाया कर्मस्थली

पंडित छन्नूलाल मिश्र मूलतः आजमगढ़ के हरिहरपुर के रहने वाले थे। वहां से वाराणसी आकर उन्होंने अपनी संगीत साधना को आगे बढ़ाया और इस आध्यात्मिक नगरी को अपनी कर्मस्थली बनाया। वह बनारस घराने और किराना घराना की गायिकी के प्रमुख प्रतिनिधि थे। उन्होंने बनारस में ठुमरी, चैती, कजरी और होली जैसे लोकगीतों को शास्त्रीय रूप देकर न केवल उन्हें देश-विदेश तक पहुंचाया बल्कि श्रोताओं के बीच लोकप्रिय भी बनाया। उनका गाया हुआ ‘खेले मसाने में होरी’ आज भी पूरी दुनिया में मशहूर है।

2010 में पद्म भूषण और 2020 में पद्म विभूषण से नवाजे गए थे

पं. छन्नूलाल को वर्ष 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2010 में ‘पद्म भूषण’ और 2020 में ‘पद्म विभूषण’ से भी अलंकृत किया गया था। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वह वाराणसी संसदीय सीट पर भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक थे। वह पिछले तीन वर्षों से मिर्जापुर में महंत शिवाला स्थित अपनी बेटी डॉ. नम्रता मिश्रा के आवास पर रह रहे थे।

बनारस की ठुमरी और लोकधुनों को वैश्विक पहचान दिलाई

वाराणसी के मशहूर सितार वादक पद्मश्री पंडित शिवनाथ मिश्र के पुत्र पंडित देवव्रत मिश्र ने कहा, ‘पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन संगीत जगत की अपूरणीय क्षति है। उन्होंने बनारस की ठुमरी और लोकधुनों को वैश्विक पहचान दिलाई।’

उनकी गायकी, प्रस्तुतीकरण और दर्शकों के साथ जुड़ाव गजब का था

वाराणसी की मशहूर शास्त्रीय गायिका डॉक्टर मंजू सुंदरम ने पंडित छन्नूलाल मिश्र का पुण्य स्मरण करते हुए कहा, ‘वह बहुत ही सौम्य और सरल स्वभाव के धनी थे। वह सभी से बहुत प्रेम स्नेह रखते थे। उनकी गायकी, प्रस्तुतीकरण और दर्शकों के साथ जुड़ाव गजब का था। वह लोकगीत को शास्त्रीय रूप से गाते थे।’

सुंदरम ने बताया कि वाराणसी के लोकगीतों ठुमरी, चैती, कजरी और होली को मिश्र ने शास्त्रीय रूप दे कर वैश्विक प्रसिद्धि दिलाई। उनका मंच पर आना ही दर्शकों को बहुत लुभाता था। वह गायकी के साथ ही दर्शकों को गीत का अर्थ भी समझाते थे। उनका जाना संगीत गीत विधा के लिए ऐसी क्षति है, जिसे भर पाना बहुत मुश्किल है।

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