नई दिल्ली, 13 दिसम्बर। विपक्षी पार्टियों ने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा में ध्वनि मत से पारित किए गए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति व सेवा शर्तों से जुड़े बिल पर सवाल उठाया है। उन्होंने इस विधेयक को चुनाव आयोग के कामकाज में हस्तक्षेप बताया है।
लोकतंत्र के खिलाफ है ये बिल
आम आदमी पार्टी (आप) सांसद राघव चड्ढा ने इस विधेयक पर सवाल उठाते हुए सरकार के इस कदम को लोकतंत्र के खिलाफ बताया है। चड्ढा ने बुधवार को कहा कि सरकार ने इस ‘बिलडोजर’ से लोकतंत्र को कुचल दिया है। यदि कोई स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव आयोग नहीं है तो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कैसे हो सकते हैं? लोकतंत्र में चुनाव आयोग की अहम भूमिका है।
तीन में से दो वोट हमेशा सरकार के पास होंगे
राघव चड्ढा ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक फॉर्मूला दिया और कहा कि तीन सदस्यीय समिति बनाएं – प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, भारत के मुख्य न्यायाधीश। यही समिति तय करेगी कि कौन चुनाव आयोग में बैठेगा या गठन कैसे होगा। लेकिन सरकार ये बिल लाकर इस तीन सदस्यीय समिति में से भारत के मुख्य न्यायाधीश को बाहर का दरवाजा दिखाकर एक मनोनीत कैबिनेट मंत्री उसके जगह बैठा देती है, यानी इस तीन सदस्यीय समिति में हमेशा दो वोट सरकार के पास होंगे।
‘यदि कानूनी राय बनी तो इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे‘
राघव चड्ढा ने कहा, ‘सरकार तय करेगी कि चुनाव आयोग में कौन बैठेगा। चुनाव आयोग की भूमिका भारतीय लोकतंत्र में बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, यदि इसके इंडिपेंडेंस से खिलवाड़ होगा तो चुनावों से खिलवाड़ करने के बराबर है। इसलिए हम सब मिलकर आपस में सलाह करेंगे और कानूनी राय लेंगे। यदि कानूनी राय सबकी बनती है तो इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी देंगे।
कांग्रेस बोली – मोदी सरकार ने भारत के लोकतंत्र पर हमला किया
इससे पहले कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने विधेयक को भारत के लोकतंत्र पर हमला बताया था। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने भारत के लोकतंत्र पर हमला किया है। भारत के लोकतंत्र और चुनावी तंत्र की स्वायत्तता, निडरता और निष्पक्षता को बुलडोजर से कुचल दिया गया है। कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि एक समय था, जब EC का मतलब ‘चुनावी विश्वसनीयता’ होता था, आज इसका मतलब है ‘चुनावी समझौता’।