नई दिल्ली, 6 फरवरी। हिन्दी सिनेमा जगत की महान गायिका ‘भारत रत्न’ लता मंगेशकर के निधन पर आज सारा देश शोक मग्न है। देशवासियों की आंखें कुछ उसी तरह नम हैं, जैसे वर्ष 27 जनवरी, 1963 की उस शाम को वे द्रवित हो उठे थे, जब लोकप्रिय गायिका ने भारत-चीन युद्ध के बाद मुंबई फिल्म इंडस्ट्री की ओर से आयोजित एक चैरिटी शो में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों….’ गीत गाया था। खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखों में आंसू थे।
लता का यह अमर गीत कवि प्रदीप ने ही लिखा था
लता का यह अमर गीत लिखा था कवि प्रदीप ने। प्रदीप का यह गीत लता के सुरों में अमर हुआ और आज तक पसंद किया जाता है। कवि प्रदीप के इस गीत के कारण आज तीनों
लता मंगेशकर के निधन के शोक में डूबे देश के लिए यह जानना भी जरूरी है कि आज कवि प्रदीप की जयंती भी है। वही कवि प्रदीप, जिनके लिखे गीत को गाए बिना आज की तारीख में देशभक्ति का कोई कार्यक्रम मुकम्मल नहीं होता। भारत की सांस्कृतिक विरासत के लिए आज यह एक विडम्बना ही है कि एक तरफ कला की देवी लता मंगेशकर को विदाई दी गई तो वहीं दूसरी ओर आज ही के दिन 107 वर्ष पहले देशभक्ति के जज्बे को जगाने वाले कवि प्रदीप का जन्म हुआ था।
लता मंगेशकर, कवि प्रदीप और सी. रामचंद्र
कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी, 1915 को मध्य प्रदेश के बड़नगर में हुआ था। उनका निधन 11 दिसंबर 1998 को मुंबई में हुआ। कवि प्रदीप बचपन में रामचंद्र नाराणय द्विवेदी के नाम से जाने जाते थे।
‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों, हिन्दुस्तान हमारा है‘
कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से हुई। लेकिन उन्हें असली ख्याति 1943 की हिट फिल्म किस्मत के गीत ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों, हिन्दुस्तान हमारा है’ से मिली। इस गीत ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया। इस गीत को समझकर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार इतनी बौखलाई कि इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा।
सिगरेट के पैकेट पर उतरा अमर गीत
‘ऐ मेरे वतन के लोगों…’ गीत की कहानी भी संयोग की कहानी है। दरअसल, 1962 में भारत चीन की लड़ाई के बाद के बाद सेना के जवानों को आर्थिक मदद देने के लिए फिल्म इंडस्ट्री ने एक चैरिटी शो आयोजित किया। यह शो 27 जनवरी 1963 को होने वाला था। इस शो में तत्कालीन पीएम नेहरू और राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन आने वाले थे।
इस कॉन्सर्ट के लिए दिग्गज कलाकारों को बुलाया गया। इसमें, महबूब खान, नौशाद, शंकर-जयकिशन, मदन मोहन और सी. रामचंद्र जैसे नाम शामिल थे। सी. रामचंद्र
कहा जाता है कि ऐन मौके पर कवि प्रदीप ने उन्हें ताना मारा और कहा कि ‘फोकट का काम हो तो आते हो’। लेकिन वह गीत लिखने के लिए राजी हो गए। फिर कवि प्रदीप एक दिन मुंबई में माहिम में बीच के किनारे टहल रहे थे और वहीं उन्होंने एक शख्स से कलम उधार मांग कर सिगरेट के पैकेट पर गीत लिखा ऐ मेरे वतन के लोगों…।
लता-प्रदीप का सांस्कृतिक योगदान आने वाली पीढ़ियों तक को प्रभावित करता रहेगा
हालांकि 27 जनवरी, 1963 को नई दिल्ली में जब यह कॉन्सर्ट हुआ तो इस कार्यक्रम में कवि प्रदीप को ही नहीं बुलाया गया था। आज प्रदीप भी नहीं हैं और अब लता जी भी नहीं रहीं। लेकिन यह विचित्र संयोग हमें हतप्रभ तो करता ही है। दोनों के शरीर हमारे साथ न हों, लेकिन उनका यह सांस्कृतिक योगदान आने वाली पीढ़ियों तक को प्रभावित करता रहेगा।