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इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी की टिप्पणी – कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का भारत सरकार का फैसला एकतरफा था

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नई दिल्ली, 5 अगस्त। इस्लामिक देशों के संगठन इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) ने भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के तीन वर्ष पूरे होने पर टिप्पणी की है कि भारत सरकार ने वह गैर कानूनी रूप से एकतरफा फैसला किया था। अपने बयान में ओआईसी ने कश्मीरियों के मानवाधिकार की बात करते हुए भारत सरकार से अपने सभी फैसले वापस लेने की बात कही है।

भारत सरकार से अपने सभी फैसले वापस लेने की बात कही

ओआईसी ने अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से ट्वीट करते हुए लिखा है कि जम्मू और कश्मीर पर इस्लामिक शिखर सम्मेलन और विदेश मंत्रियों की परिषद के प्रस्तावों को याद करते हुए महासचिव ने कश्मीरियों के आत्मनिर्णय अधिकार की प्राप्ति में उनके साथ एकजुटता का संकल्प दोहराया। भारत ने एकतरफा कई गैर कानूनी फैसले लेकर भू-राजनीतिक बदलाव किए। ओआईसी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के तहत जम्मू-कश्मीर विवाद के हल के लिए उचित कदम उठाए।’

भारत सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को समाप्त किया था अनुच्छेद 370

गौरतलब है कि आज से तीन वर्ष पहले पांच अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा भी समाप्त कर दिया गया था और सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों में विभक्त कर दिया था।

अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर के निवासियों की नागरिकता, संपत्ति के स्वामित्व और मौलिक अधिकारों का कानून शेष भारत में रहने वाले निवासियों से अलग था। अनुच्छेद 370 के तहत, अन्य राज्यों के नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते थे। इसकी वजह से जम्मू और कश्मीर में केद्र की स्थिति कमजोर हो जाती थी।

इमरान खान ने भी अलापा कश्मीर राग

उधर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी एक बार फिर कश्मीर राग अलापा। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि मोदी सरकार ने भारत के कब्जे वाले कश्मीर की डेमोग्राफी बदल कर चौथे जिनेवा समझौते के तहत युद्ध अपराध भी किया है। उन्होंने कहा कि इससे कश्मीरियों का प्रतिरोध और मजबूत हुआ है और आगे भी मजबूत होगा।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर भारत से डरने का आरोप लगाते हुए इमरान खान ने लिखा, ‘हमसे कहा जाता है कि हम मानवाधिकार के मुद्दे पर आलोचनाओं का साथ दें, लेकिन जब भारत और कश्मीर में उसके मानवाधिकार उल्लंघन की बात आती है तो वही शक्तियां भारत के बाजार के कारण खामोश हो जाती हैं।’