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उत्तराखंड :  जोशीमठ में लाल निशान वाले घरों पर लगाए गए ‘इस्तेमाल लायक नहीं’ के पोस्टर

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जोशीमठ, 14 जनवरी। उत्तराखंड के जोशीमठ में दरार वाले घरों का निरीक्षण करने पहुंची इंजीनियरों की टीम ने नौ वॉर्डों में 4000 भवनों का आकलन किया। आकलन के बाद टीम ने जर्जर हो चुकी इमारतों को चिह्नित कर उनकी दीवारों पर ‘इस्तेमाल लायक नहीं’ का पोस्टर लगा दिया है।

सीबीआरआई के मुख्य अभियंता डॉ. अजय चौरसिया ने शनिवार को इस पूरी प्रक्रिया की जानकारी देते हुए बताया, ‘हम भवनों के विवरण का आकलन कर रहे हैं कि भवन का निर्माण कैसे किया गया, किस सामग्री का उपयोग किया गया और यह निर्धारित मानदंडों के अनुसार था या नहीं।’

डॉ. अजय चौरसिया ने बताया कि जिन घरों में दरारें आने की सूचना मिली है, उनके आकलन के बाद मूल्यांकन रिपोर्ट उत्तराखंड सरकार को प्रस्तुत की जाएगी ताकि वे उसके अनुसार एक प्रशासनिक योजना बना सकें। इंजीनियरों की टीम ने आकलन के बाद अब तक दो दर्जन से अधिक इमारतों पर  ‘इस्तेमाल लायक नहीं’ के पोस्टर लगाए हैं। पूरी प्रक्रिया के दौरान पीड़ित मकान मालिक चुपचाप टीम को घरों पर पोस्टर लगाते हुए देख रहे थे।

गौरतलब है कि जोशीमठ में जमीन धंसने और इमारतों में दरारें पड़ने की गति लगातार बढ़ती जा रही है। भू-धंसाव को लेकर कई अध्ययन किए जा रहे हैं और अब तक जो सामने आया है, उसके हिसाब से पूरे जोशीमठ के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है।

असुरक्षित घोषित किए गए होटलों और घरों को ढहाए जाने की प्रक्रिया जारी

जोशीमठ में असुरक्षित घोषित किए गए होटलों और घरों को ढहाए जाने की प्रक्रिया भी चल रही है और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा रहा है। उत्तराखंड सरकार ने पीड़ितों के लिए राहत की घोषणा भी की है और विस्थापितों के लिए मकानों के किराए की धनराशि पांच हजार रुपये तय की है। इसके अलावा विस्थापितों के बिजली-पानी के बिल छह महीने की अवधि के लिए माफ करना तथा बैंकों से उनके ऋणों की वसूली एक साल तक स्थगित रखना भी शामिल है।

प्लेटफॉर्म में दरार के बाद जोशीमठ-औली रोप-वे भी अगले आदेश तक बंद

इस बीच जोशीमठ-औली को जोड़ने वाली रोप-वे के प्लेटफॉर्म में भी दरार पड़ गई, जिसके चलते शनिवार को रोप-वे को भी अगले आदेश तक बंद कर दिया गया है।

वस्तुतः जोशीमठ में घरों में आ रही दरारों की सबसे बड़ी वजह पहाड़ों में विकास के नाम पर दिन रात चल रहे निर्माण कार्य और बड़ी-बड़ी मशीनों से हो रहे ड्रिलिंग को बताया जा रहा है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि जब एनटीपीसी जैसे प्रोजेक्टों के लिए खुदाई होती है तो उसकी वजह से पहाड़ का ऊपरी हिस्सा कमजोर होने लगता है। सरकार ने इस तथ्य को नजरअंदाज किया और अब जोशीमठ जैसा उदाहरण सामने है।

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