नई दिल्ली, 5 दिसम्बर। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को केंद्रीय मंत्री एल. मुरुगन के खिलाफ दिसम्बर, 2020 में प्रेस वार्ता के दौरान उनके कथित मानहानिकारक बयानों को लेकर चेन्नई स्थित मुरासोली ट्रस्ट द्वारा दायर की गई शिकायत पर आपराधिक मानहानि की कार्यवाही रद कर दी।
न्यायमूर्ति बी. आऱ गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने यह आदेश तब पारित किया जब मुरुगन के वकील ने कहा कि नेता का कभी ट्रस्ट को बदनाम करने या उसकी प्रतिष्ठा को कोई नुकसान पहुंचाने का इरादा नहीं था।
पीठ ने कहा कि ट्रस्ट की ओर से उपस्थित वकीलों ने विनम्रतापूर्वक कहा है कि चूंकि मुरुगन ने स्पष्ट कर दिया है कि उनका ट्रस्ट को बदनाम करने या उसकी छवि को नुकसान पहुंचाने या चोट पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था, इसलिए वे अभियोजन जारी रखने का इरादा नहीं रखते।
पीठ ने कहा, ‘‘प्रतिवादी (ट्रस्ट) ने जो शालीनता दिखाई है उसके लिए हम उसकी सराहना करते हैं और इसे रिकॉर्ड में दर्ज कर रहे हैं।’’ पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के पांच सितम्बर, 2023 के आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें मानहानि की कार्यवाही को रद करने से इनकार कर दिया गया था। पीठ ने कहा, ‘‘इस मामले को देखते हुए विवादित आदेश के साथ-साथ आपराधिक कार्यवाही को भी रद किया जाता है।’’
शीर्ष अदालत का यह आदेश केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री मुरुगन की उस अपील पर आया है, जिसमें उन्होंने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। मामले में बुधवार को सुनवाई करते हुए पीठ ने टिप्पणी की थी कि राजनीति में प्रवेश करने पर हर तरह की अनुचित और अनावश्यक टिप्पणियों के लिए तैयार रहना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने सितम्बर, 2023 में मुरुगन के खिलाफ चेन्नई की एक विशेष अदालत में लंबित कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और उनकी याचिका पर ट्रस्ट से जवाब मांगा था। अपने खिलाफ कार्यवाही को चुनौती देते हुए मुरुगन ने पहले उच्च न्यायालय का रुख किया था, जिसने अपने आदेश में ट्रस्ट की ये दलील दर्ज की थी कि उन्होंने (मुरुगन ने) ‘‘आम लोगों की नजरों में मुरासोली ट्रस्ट की प्रतिष्ठा को गिराने और उसकी छवि को धूमिल करने के मंशा से’’ ये बयान दिए थे।
उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘मामला रद्द करने संबंधी याचिका पर विचार करते समय यह अदालत मामले के गुण-दोष या तथ्यों के विवादित प्रश्नों पर विचार नहीं कर सकती। यह अदालत केवल शिकायत में लगाए गए आरोपों पर विचार करेगी और प्रथम दृष्टया यह पता लगाना है कि अपराध बनता है या नहीं।’’
याचिका खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने चेन्नई की एक निचली अदालत को तीन महीने के भीतर मामले का निबटारा करने का निर्देश दिया था। अदालत ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता (मुरुगन) को निचली अदालत के समक्ष सभी विषय उठाने की छूट दी गई है और उन पर उसके गुण-दोष के आधार पर तथा कानून के अनुसार विचार किया जाएगा।’’