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नाटो देश भी उठा रहे अमेरिका पर सवाल?, अमेरिकी राष्ट्रपति का रवैया ही जिम्मेदार

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नई दिल्ली, 25 जून। आंतरिक अशांति और चुनौतियों से जूझ रहे भीमकाय देश संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) की सारी परेशानियों का सबब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं। वह अपने सोच-विचार और कार्यशैली के कारण देश के भीतर ही नहीं बल्कि सारी दुनिया के लिए विकराल संकटों की बौछार कर रहे हैं। विडम्बना यह कि अपने व्यवहार में राष्ट्रपति ट्रंप परिवर्तन नहीं लाना चाहते। उनके कूटनीतिक सलाहकार भी कमोबेश उनकी तरह ही हैं और वे ट्रंप के यस मैन की तरह बर्ताव करते हैं।

नीदरलैंड्स के हेग में नाटो की दो दिवसीय बैठक

ट्रंप की इस विचारधारा और कार्यशैली का प्रतिकूल असर अमेरिका ही नहीं, अपितु समूचे विश्व के लोकतांत्रिक माहौल पर पड़ रहा है। नीदरलैंड्स के हेग में मंगलवार से उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो की दो दिवसीय बैठक हो रही है, जिसका आज अंतिम दिन है। नाटो कभी दुनिया का सबसे ताकतवर सैनिक सहयोग संगठन था, लेकिन इन दिनों यह इतिहास के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति का रवैया ही जिम्मेदार है।

दरअसल, नाटो की शिखर बैठक ऐसे माहौल में हो रही है, जब तीन वर्षों से भी अधिक समय से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, मध्य-पूर्व में ईरान और इजराइल के बीच अभी औपचारिक युद्धविराम संशय में है और समूची वैश्विक अर्थव्यवस्था अस्थिरता के दौर का सामना कर रही है। ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप विचित्र सा दबाव नाटो के सारे सदस्य देशों पर डाल रहे हैं।

पिछले कार्यकाल में नाटो को धमका चुके हैं ट्रंप

ट्रंप कह रहे हैं कि नाटो के सभी सदस्य देश अपनी जीडीपी का पांच प्रतिशत रक्षा पर खर्च करें। इससे पहले वे दो प्रतिशत की बात करते थे। नाटो के देशों को उनका रवैया बेतुका लग रहा है। कभी वे कहते हैं कि अमेरिका के पैसे पर नाटो देश सुविधाएं भोग रहे हैं तो कभी कहते हैं कि जो राष्ट्र इतना पैसा रक्षा पर खर्च नहीं करेंगे तो वे रूस से उनका बचाव नहीं करेंगे, उल्टे रूस को उन पर आक्रमण के लिए प्रोत्साहित करेंगे। ऐसे अटपटे मिजाज वाले व्यक्ति का कोई संगठन कर भी क्या सकता है? पिछले कार्यकाल में वह यहां तक धमका चुके हैं कि यदि नाटो के देश उनकी बात नहीं मानते तो वे नाटो से अलग होने में पलभर की देर नहीं करेंगे।

नाटो देशों के प्रति अमेरिकी राष्ट्रपति का यह अहंकारी रवैया बेवजह भी नहीं है। व्यावहारिक तौर पर अमेरिका समूचे यूरोपीय देशों को किसी भी परमाणु हमले से बचाव की गारंटी देता रहा है। यूरोप के राष्ट्रों पर रूस के परमाणु हमले का संकट बना रहता है। लेकिन यह स्थिति तो 1945 के बाद से ही बन गई थी, जब जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका ने परमाणु बम गिराए थे।

परमाणु हथियारों का स्वयंभू चौकीदार बना हुआ है अमेरिका

उसके बाद से ही अमेरिका परमाणु हथियारों का स्वयंभू चौकीदार बना हुआ है। नाटो के देश भी यह तथ्य जानते हैं, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप जिस सामंती और धौंस डपट का प्रदर्शन करते हैं, वह 2025 का यूरोप स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। अतीत में इक्का-दुक्का घटनाएं अवश्य हुईं, जब अमेरिका की अधिनायकवादी सोच का नाटो के सदस्यों ने विरोध भी किया। लेकिन बाद में अमेरिका ने उनको मना लिया।

अमेरिकी रौब के विरोध में एक बार नाटो से हट चुका है फ्रांस

फिलहाल डोनाल्ड ट्रंप तो इतने जिद्दी और हेकड़ीबाज हैं कि वह इसकी जरूरत भी नहीं समझते। सबसे पहले अमेरिका और उसके पिछलग्गू ब्रिटेन के नाटो में रौब का फ्रांस ने विरोध किया था और 1966 में नाटो से अपने को अलग कर लिया था। फ्रांस का कहना था कि उसकी संप्रभुता अमेरिका के कारण खतरे में है। उन्होंने अपने देश से नाटो का कार्यालय और अमेरिकी सैनिकों को हटा दिया था।

करीब 16 वर्ष पहले अमेरिका ने फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी को मनाया। उसके बाद फ्रांस फिर से नाटो में शामिल हुआ। अमेरिका से खफा ग्रीस ने भी नाटो से कुट्टी कर ली थी। जब 1974 में साइप्रस में तख्तापलट हुआ तो उसे ग्रीस का समर्थन था।

कई वर्षों तक ग्रीस भी नाटो से अलग रह चुका है

इससे तुर्किये क्रोध में आया और उसने साइप्रस पर हमला करके उसके एक तिहाई इलाके पर कब्ज कर लिया। आज भी यह इलाका उसके कब्जे में है। ग्रीस और तुर्किए नाटो में थे। ग्रीस को लगा कि अमेरिका चाहता तो तुर्किए को रोक सकता था। उसने नाटो से सैन्य सहयोग का नाता तोड़ लिया। छह वर्ष बाद अमेरिका ने मनाया और ग्रीस फिर नाटो में शामिल हो गया।

तीसरा अवसर आया, जब तुर्किये ने रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा तंत्र खरीदा था। अमेरिका ने इसे नाटो के लिए खतरा बताया क्योंकि नाटो तो रूस से बचाव के लिए ही बना था। तुर्किये को एफ-35 लड़ाकू जेट कार्यक्रम से बाहर कर दिया। इसी तरह हंगरी की रूस से स्वाभाविक निकटता अमेरिका को कभी नहीं पची।

इन अतीत कथाओं को ताजा करने का मकसद यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने सारे पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों से अलग हैं। अमेरिका में उन्हें झूठा और पाखंडी कहा जाने लगा है, वह इसीलिए अपने देश के इतिहास में सर्वाधिक अलोकप्रिय राष्ट्रपति हैं। वह हेग शिखर सम्मेलन में चाहेंगे कि नाटो देश उनके इशारे पर नाचें। लेकिन ऐसा होता नहीं दिखाई देता।

स्पेन और कनाडा ने रक्षा बजट बढ़ाने की मांग खारिज कर दी है। ट्रंप ने अपनी शैली में उत्तर देते हुए कहा कि नाटो स्पेन और कनाडा से निबट लेगा। नाटो ने एक महीने में तीन लाख सैनिक बढ़ाने का एलान किया है। नाटो के महासचिव कह चुके हैं कि अब रूस से निबटने की बारी है।

इजराइल सदस्य नहीं, लेकिन प्रमुख गैर नाटो सहयोगी का दर्जा

संदर्भ के तौर देखें तो इजराइल नाटो का सदस्य नहीं है, लेकिन उसे प्रमुख गैर नाटो सहयोगी का दर्जा दिया गया है। उस पर अमेरिका दशकों से मेहरबान है। आंकड़े कहते हैं कि 2022 में उसे अमेरिका ने 4.8 अरब डॉलर की मदद दी थी। लेकिन पिछले वर्ष जो बाइडेन ने इजराइल को 18 खरब, 47 अरब, 15 करोड़ 19 लाख रुपये यानी 22.76 बिलियन डॉलर की सहायता दी। एक बरस में इतनी बढ़ोत्तरी और नाटो के सदस्य देशों को रक्षा बजट बढ़ाने का ट्रंपी निर्देश आने वाले दिनों के लिए आशंकाओं को जन्म देता है।

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