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जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही पर टिकी है लोकतंत्र की नींव : ओम बिरला

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बेंगलुरु, 24 सितम्बर। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र की नींव निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की जनता के प्रति जवाबदेही पर टिकी हुई है। ओम बिरला ने शुक्रवार को कर्नाटक विधान परिषद और विधान सभा के सदस्यों को संबोधित करते हुए कि संसदीय लोकतंत्र की नींव निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की जनता के प्रति जवाबदेही पर टिकी हुई है। संसद एवं विधान मंडलों की प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनता के प्रति संवेदनशील रहें तथा उनकी आशाओं और अपेक्षाओं को इन विधान मंडलों के माध्यम से पूर्ण कर सके।

उन्होंने कहा कि सशक्त लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है कि इस प्रणाली में जनता का विश्वास बरकरार रहे। यह तभी हो सकता है जब जनप्रतिनिधि अपने आचरण से आदर्श प्रस्तुत करे जिससे लोकतंत्र के प्रति जनमानस की आस्था बढ़े। उन्होंने जनप्रतिनिधियो से आह्वान किया कि ‘यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम जो कानून बना रहे हैं, उन पर व्यापक चर्चा हो, संवाद हो और विधायकों की अधिक सक्रिय भागीदारी हो ताकि जो कानून बने, उस पर कोई सवाल न उठे।’

इस विषय में विधायकों की क्षमता और दक्षता को बढ़ाने पर जोर देते हुए उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि कानून बनाते समय जितनी व्यापक चर्चा और संवाद विधान मंडलों में होनी चाहिए, सदस्यों की जितनी भागीदारी होनी चाहिए, उतनी व्यापक सहभागिता और चर्चा-संवाद नहीं हो पा रहा हैं। सदन में व्यवधान और शोरगुल की समस्या की और इशारा करते हुए ओम बिरला ने कहा कि चूंकि जनप्रतिनिधि सीधे तौर पर जनता से जुड़े होते हैं और उनके अभावों, समस्याओं और कठिनाइयों को निकटता से समझते हैं, इसलिए विधि निर्माण में उनकी सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। इसके लिए उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सभा का बहुमूल्य समय व्यवधान और शोरगुल के कारण नष्ट न हो।

उन्होंने कहा कि आज फिर से विधान मंडलों के अंदर अनुशासन, शालीनता और गरिमा बनाए रखने के लिए व्यापक विचार विमर्श की आवश्यकता है। समय समय पर इस संबंध में विभिन्न मंचों पर विचार विमर्श किया जाता रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि 1992, 1997 तथा 2001 में इसके लिए अलग-अलग सम्मेलनों का आयोजन किया गया था जिसमें देश-प्रदेश के पीठासीन अधिकारियों, सत्ता पक्ष और प्रति पक्ष के वरिष्ठ नेताओं ने विधान मंडलों में अनुशासन, शालीनता और सदन की गरिमा को बनाए रखने के लिए व्यापक चर्चा और संवाद किए थे और कुछ प्रस्ताव और संकल्प भी पारित किए थे। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि इसका तात्पर्य यह नहीं है कि सदन में विरोध, मतभेद, असहमति नहीं हो। वास्तव में, विरोध, मतभेद, सहमति-असहमति, तर्क-वितर्क, वाद-विवाद और मतांतर हमारे लोकतंत्र की विशेषता है।