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योग्यता को सामाजिक रूप से प्रासंगिक बनाया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

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नयी दिल्ली, 20 जनवरी (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा-पीजी (नीट-पीजी) आरक्षण मामले में गुरुवार को कहा कि परीक्षाएं आर्थिक सामाजिक लाभ को नहीं दर्शाती हैं जोकि कुछ वर्गों को मिला है, इसलिए योग्यता को सामाजिक रूप से प्रासंगिक बनाया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मेडिकल पाठ्यक्रम में स्नातकोत्तर कक्षाओं में दाखिले से संबंधित राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा-2021-22 (नीट-पीजी) मामले की काउंसलिंग एवं नामांकन की प्रक्रिया आगे बढ़ाने की अनुमति देने के संबंध में विस्तृत आदेश पारित करते हुए कहा कि आरक्षण योग्यता के विपरीत नहीं है।

पीठ ने गत सात जनवरी को दिए अपने अंतरिम आदेश के संदर्भ में विस्तृत कारण बताते हुए कहा कोरोना महामारी के इस दौर में हमें डॉक्टरों की सख्त आवश्यकता है। ऐसे में किसी भी न्यायिक हस्तक्षेप से इस साल प्रवेश प्रक्रिया में देरी होती, पात्रता योग्यता में कोई बदलाव और दोनों पक्षों की ओर से मुकदमेबाजी आगे बढ़ने से नामांकन में देरी होती।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि जब परीक्षाओं की तारीखें तय की गईं तो ऐन वक्त पर नियमों में बदलाव किया गया। अदालत ने कहा कि ऑल इंडिया कोटा (एआईक्यू) सीटों में आरक्षण देने से पहले केंद्र को इस अदालत की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं थी और इस तरह उनका फैसला सही था। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि संवैधानिक व्याख्या के शामिल होने के मामलों में न्यायिक औचित्य हमें कोटा पर रोक लगाने की अनुमति नहीं देगा, खासकर जब मामला लंबित हो।

पीठ ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के कोटे के संबंध में कहा कि हमने कहा है कि याचिकाकर्ताओं की दलीलें सिर्फ एआईक्यू में हिस्सेदारी तक सीमित नहीं थी बल्कि मानदंड (परिवार की सालाना आमदनी आठ लाख रुपये तक) भी थी, इसलिए इस मामले पर विस्तार से सुनवाई की जरूरत है। अदालत इस मामले में मार्च के तीसरे सप्ताह में विचार करेगा।

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