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मनरेगा मजदूरी के लिए स्वराज अभियान ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका, जानें मामला

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नई दिल्ली, 6 दिसंबर। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के श्रमिकों को बकाया मजदूरी देने की मांग तथा इस मद के बजट में भारी कमी करने के केन्द्र सरकार के फैसले के मद्देनजर मजदूरों के समक्ष संभावित गंभीर संकट को लेकर ‘स्वराज अभियान’ की ओर से एक जनहित याचिका उच्चतम न्यायालय में दाखिल की गई है।

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में स्वयंसेवी संस्था ‘स्वराज अभियान’ ने शीर्ष अदालत से मांग की है कि वह मनरेगा के कार्यान्वयन के लिए सरकार को आदेश दे। इस स्वयंसेवी संस्था में स्वराज इंडिया प्रमुख योगेंद्र यादव समेत कई प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता पत्रकार वकील आदि शामिल हैं।

पेशे से वकील स्वराज अभियान के महासचिव अविक साहा की याचिका में मनरेगा के लिए पर्याप्त धन सुनिश्चित करने, अगले 30 दिनों के भीतर सभी लंबित मजदूरी का भुगतान करने, प्रति परिवार 50 दिनों के काम का अतिरिक्त अधिकार प्रदान करने के अलावा अन्य मुद्दों पर निर्देश जारी करने की गुहार लगाई गई है।
याचिकाकर्ता ने मीडिया एवं अन्य माध्यमों से उपलब्ध आंकड़ों का हवाला देते हुए जनहित की इस याचिका पर अतिशीघ्र सुनवायी की भी सर्वोच्च अदालत से गुहार लगायी है। याचिका में ‘स्वराज अभियान’ ने दावा किया है कि करोड़ों श्रमिकों की मजदूरी केंद्र सरकार द्वारा धन के अपर्याप्त आवंटन के कारण लंबित है।

याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी और केंद्र सरकार द्वारा कथित अनियोजित लॉकडाउन के कारण, देश भर में करोड़ों मनरेगा श्रमिकों, जिन्होंने अपनी आजीविका खो दी थी। याचिकाकर्ता का यह भी आरोप है कि दुर्भाग्य से सरकार ने सबसे कमज़ोर वर्ग को समर्थन देने के बजाय, मनरेगा के लिए बजटीय आवंटन को काफी कम कर दिया है।

आंकड़ों का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2020-21 के 1,10,000 करोड़ बजट को वर्ष 2021-22 में 73,000 करोड़ रुपये कर दिया है। इस तरह 37,000 करोड़ रुपये वर्तमान वित्तीय वर्ष में कम कर दिए गए हैं। वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में 2020-21 के बकाया भुगतानों पर 17,000 करोड़ रुपये खर्च किये गये, जबकि शेष बजट अक्टूबर माह तक समाप्त हो गया। जब वित्तीय वर्ष में पांच महत्वपूर्ण माह शेष थे। इसके कारण 70 लाख श्रमिकों का कुल 1,121 करोड़ रुपये की मजदूरी बकाया है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि नौकरी हासिल करने में नाकाम लोग ही मनरेगा के तहत काम करते हैं। ऐसे हालत में श्रमिकों को मजबूरन बहुत कम भुगतान वाला काम करना पड़ता है। याचिका में कहा गया है कि मनरेगा के तहत हर ग्रामीण परिवार को सौ दिन के रोजगार का कानूनी अधिकार प्राप्त है, लेकिन अपर्याप्त धन और अनियमित कार्यान्वयन के कारण उनका यह अधिकार बुरी प्रभावित हो गया है।

याचिका में केंद्र सरकार को एक निर्देश जारी कर मनरेगा के कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त धन सुनिश्चित करने, श्रमिकों को काम के लिए अपनी मांग दर्ज कराने की व्यवस्था और पंजीकरण के 15 दिनों के भीतर काम न मिलने वालों को बेरोजगारी भत्ता सुनिश्चित करने का आदेश सरकार को देने की गुहार लगाई गई है। अगले 30 दिनों के भीतर सभी लंबित मजदूरी का भुगतान करने तथा प्रति परिवार 50 दिनों का अतिरिक्त रोजगार देने का सरकार को निर्देश देने की भी याचना की गई है।

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