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सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर तिहाड़ जेल के 32 अधिकारी व कर्मचारी निलंबित

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नई दिल्ली, 14 अक्टूबर। उच्चतम न्यायालय के आदेश पर तिहाड़ जेल के 32 अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर एक साथ निलंबन की गाज गिरी है। जेल मैनुअल के खिलाफ कैदियों को अवैध रूप से मदद करने के मामले में यह कार्रवाई अब तक की सबसे बड़ी बताई जा रही है। देश की सबसे सुरक्षित माने जाने वाली तिहाड़ जेल के अधिकारी- कर्मचारियों पर भवन निर्माण से जुड़ी जानीमानी कंपनी ‘यूनिटेक लिमिटेड’ के पूर्व प्रमोटर अजय चंद्रा और संजय चंद्रा को तिहाड़ जेल में विचाराधीन कैदी के तौर पर बंद रहने के दौरान जेल मैनुअल के खिलाफ मदद करने के आरोप हैं। चंद्रा बंधुओं पर आरोप है कि वे जेल में रहकर कंपनी के दैनिक कामकाज में नाजायज दखल देते थे।

मामला सामने आने के बाद उच्चतम न्यायालय के 26 अगस्त के आदेश पर दोनों भाइयों को 28 अगस्त को तिहाड़ जेल से महाराष्ट्र के मुंबई स्थित अति सुरक्षित मानेजाने वाले आर्थर और तलोजा जेलों में स्थानांतरित कर दिया गया था।न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने छह अक्टूबर को आदेश दिया था कि दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना की जांच में प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए सभी आरोपियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर इस मामले की पूरी जांच की जाए।

अदालत ने यह भी कहा था कि जांच पूरी तक आरोपियों को निलंबित रखा जाए। दिल्ली पुलिस ने जांच रिपोर्ट दाखिल करने के साथ ही आरोपियों पर कानूनी कार्रवाई करने की अनुमति मांगी थी।
दिल्ली पुलिस की ओर से प्राथमिकी दर्ज होने की अगले दिन जेल प्रशासन ने बुधवार को अपने 30 अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित कर दिया, जबकि संविदा पर कार्यरत दो कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा है। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली पुलिस उपायुक्त राकेश अस्थाना की जांच रिपोर्ट के आधार पर यह आदेश दिया था।

श्री अस्थाना ने शिकायत मिलने के बाद खुद जेल परिसर जाकर जांच की थी और उच्चतम न्यायालय को इस बारे में दिल्ली पुलिस की ओर से 28 सितंबर को जांच रिपोर्ट दाखिल कर अवगत कराया था। दिल्ली पुलिस ने इस मामले में जेल के नामजद आरोपी अधिकारियों एवं कर्मचारियों समेत अज्ञात लोगों के कानूनी कार्रवाई करने की अनुमति अदालत से मांगी थी। दिल्ली पुलिस ने चंद्र बंधुओं को कथित तौर पर मदद करने वाले आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून- 1988 की 7, 8 और 12 धाराओं के अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 201 और 120-बी के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने की अनुमति अदालत से मांगी थी।

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