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नारायण साकार हरि बाबा उर्फ सूरज पाल सिंह : हमेशा सूट-बूट में रहते हैं, 3 राज्यों में फैले हैं अनुयायी

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अलीगढ़, 2 जुलाई। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में मंगलवार की दोपहर हुए दर्दनाक हादसे के बाद हर कोई बाबा नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के बारे में जानने को उत्सुक हो उठा, जिनका एक दिवसीय सत्संग अधिसंख्य महिलाओं व बच्चों सहित लगभग सवा सौ श्रद्धालुओं के लिए जानलेवा साबित हुआ।

बताया जा रहा है कि लगभग सवा लाख लोगों की भीड़ के सम्मुख प्रवचन के बाद साकार हरि बाबा जब संत्सग स्थल से लौट रहे थे, तभी उनके चरण स्पर्श करने के लिए अनुयाइयों की ऐसी भीड़ उमड़ी कि भगदड़ मच गई और देखते हुए निरीह प्रणियों की लाशें बिछ गईं।

साकार हरि बाबा का असली नाम सूरज पाल सिंह

साकार हरि बाबा का असली नाम सूरज पाल सिंह है। बाबा एटा जिले को काटकर बनाए गए कासगंज जिले के पटियाली के रहने वाले हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो बचपन में सूरज पाल अपने पिता के साथ खेती बाड़ी का काम देखते थे और बाद में पुलिस सेवा में आ गए। लगभग दो दशक पहले पुलिस की नौकरी छोड़कर सत्संग करने लगे। कुछ अन्य लोग बताते हैं कि उन्हें पुलिस सेवा से बर्खस्त किया गया था। खैर, नौकरी से हटने के बाद सूरज पाल नाम बदलकर साकार हरि बन गए। धीरे-धीरे अनुयायी उन्हें भोले बाबा कहने लगे।

कहा जाता है कि गरीब और वंचित तबके के लोगों के बीच में इनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी। कुछ समय में लाखों की संख्या में अनुयायी बन गए। अब तो उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी इनके अनुयायी फैल चुके हैं। हैरानी की बात तो यह है कि वह प्रवचन कार्यक्रमों में अपनी पत्नी को साथ लेकर जाते हैं।

मानव सेवा का देते हैं संदेश

साकार हरि बाबा अपने सत्संग में मानव सेवा का संदेश देते हैं। ज्यादातर सत्संग में लोगों से बाबा कहते हैं कि मानव की सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है। सत्संग में आने से रोग मिट जाते हैं, मन शुद्ध होता है, यहां पर कोई भेदभाव नहीं, कोई दान नहीं और कोई पाखंड नहीं। दावा करते हैं यहीं सर्व समभाव है यहीं ब्रह्मलोक है, यहीं स्वर्ग लोक है।

सूट-बूट में रहते हैं बाबा

बाबा के बारे में कुछ लोग कहते हैं कि ये यूपी पुलिस में दरोगा हुआ करते थे। कुछ इन्हें आईबी से जुड़ा भी बताते हैं। इसीलिए बताया जाता है कि बाबा पुलिस के तौर-तरीकों से परिचित हैं। वर्दीधारी स्वयंसेकों की लंबी-चौड़ी फौज खड़ी करने में यह काफी मददगार साबित हुआ। बाबा आम साधु-संतों की तरह गेरुआ वस्त्र नहीं पहनते हैं। बहुधा वह महंगे गॉगल, सफेद पैंटशर्ट पहनते हैं। अपने प्रवचनों में बाबा पाखंड का विरोध भी करते हैं। चूंकि बाबा के शिष्यों में बड़ी संख्या में समाज के हाशिए वाले, गरीब, दलित, दबे-कुचले लोग शामिल हैं। उन्हें बाबा का पहनावा और यह रूप बड़ा लुभाता है।

मीडिया से भी दूरी बनाकर रखते हैं

बाबा के सत्संगों में बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। बाबा के शिष्य अपनी ही मस्ती में रहते हैं। यही वजह है कि मीडिया से भी ये लोग दूरी बरतते हैं। दरअसल, बाबा के सत्संग के तौर-तरीके चूंकि आम संतों से अलग होते हैं, लिहाजा ये लोग नहीं चाहते कि इस पर किसी प्रकार की टीका-टिप्पणी हो।

कोरोना काल में भी बाबा के सत्संग में हुई थी लापरवाही

दो वर्ष पहले भी जब देश में कोरोना की लहर चल रही थी, उस समय उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में मई, 2022 में भोले बाबा के सत्संग का आयोजन किया गया। जिला प्रशासन ने सत्संग में केवल 50 लोगों के शामिल होने की अनुमति दी थी, लेकिन कानून की धज्जियां उड़ाते हुए 50,000 से अधिक लोग सत्संग में शामिल हुए थे। उस दौरान उमड़ी भीड़ के चलते शहर की यातायात व्यवस्था ध्वस्त हो गई थी।