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डॉ. मृदुल कीर्ति की देशवासियों से अपील – ‘जनगणना में अपनी जानने वाली भाषाओं में से एक संस्कृत अवश्य दर्ज कराएं’

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वाराणसी, 21 अक्टूबर। देश की ख्यातिलब्ध लेखिका और अनुवादक डॉ. मृतुल कीर्ति ने देशवासियों से अपनी पौराणिक भाषा संस्कृत के प्रचार-प्रसार की अपील की है। उन्होंने साथ ही यह भी निवेदन किया है कि आमजन 2023 की भारतीय जनगणना में अपनी जानने वाली भाषाओं में से एक संस्कृत अवश्य दर्ज कराएं।

डॉ. मृदुल कीर्ति का संक्षिप्त परिचय

उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में जन्मी डॉ. मृदुल कीर्ति ने राजनीति विज्ञान में मेरठ विश्वविद्यालय से 1991 में पीएचडी की है। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एमए किया।

भारत के अलावा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को अपना निवास स्थान बना चुकीं 72 वर्षीया डॉ. मृदुल कीर्ति ने संस्कृत भाषा में लिखे गए पातंजली योग, सांख्ययोग, सामवेद और अष्टावक्र गीता समेत 18 हिन्दू महाग्रंथों का आसानी से समझ में आने वाली हिन्दी और ब्रज भाषा में काव्यात्मक अनुवाद किया है। डॉ. कीर्ति को फिजी में आयोजित 12वें विश्व हिन्दी सम्मेलन (15-17 फरवरी 2023) के दौरान विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने विश्व हिन्दी सम्मान से सम्मानित किया था।

भारतीय जनगणना को लेकर डॉ. मृदुल कीर्ति ने आमजन से अपील करते हुए कहा कि जनगणना अधिकारी जानकारी इकट्ठा करने जब आपके घर आएं तो आपकी मातृभाषा हिन्दी, गुजरती, मराठी आदि जो भी हो, उसे ध्यान में लिए बगैर आप सनातनी हिन्दू होने के नाते उसे यह बताना न भूलें कि आप संस्कृत भी जानते हैं।

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ऑस्ट्रेलिया दौरे के वक्त सिडनी में गत 23 मई को डॉ. मृदुल कीर्ति के ऋषि जन्य सांस्कृतिक ग्रंथों के मूल संस्कृत से हिन्दी काव्यानुवाद का विमोचन किया था।

हम हर दिन अपनी प्रार्थना, मंत्रोच्चारश्लोक आदि संस्कृत भाषा में ही बोलते हैं

डॉ. मृदुल कीर्ति का मानना है कि भले ही आप संस्कृत भाषा व्यवहार में रोज न बोलते हों। इसके पीछे का तर्क यह है कि हम हर दिन अपनी प्रार्थना, मंत्रोच्चार, श्लोक, संपूर्ण धार्मिक विधियां निश्चित रूप से संस्कृत भाषा में ही बोलते हैं | इस तरह देवताओं की भाषा संस्कृत का शुभ – अशुभ कार्यों में प्रयोग करते हैं तो इस बार जनगणना करने वाले अधिकारी के पत्रक में यह अवश्य अंकित कराना है कि आप संस्कृत भाषा भी जानते हैं।

नहीं चेते तो संस्कृत भाषा को लुप्त भाषाओं की श्रेणी में सम्मिलित कर दिया जाएगा

गौरतलब है कि देश की आखिरी जनगणना के हिसाब से संस्कृत बोलने वालों की संख्या समग्र भारत में लगभग दो हजार ही बताई गई थी। उसके विपरीत अरबी और फारसी बोलने वालों की संख्या इससे अनेक गुणा अधिक थी। इसी आधार पर उन्हें भाषा के विकास हेतु फंड दिया जाता है। यदि इस बार संस्कृत बोलने – जानने वालों की संख्या कम हुई तो ऐसी आशंका ज्यादा है कि संस्कृत भाषा को लुप्त भाषाओं की श्रेणी मे सम्मिलित कर दिया जाएगा।

हम सबके सम्मिलित प्रयासों से ही संस्कृत को जीवंत रखा जा सकेगा

डॉ. मृदुल कीर्ति कहती हैं, ‘संस्कृत तो भारत वर्ष की सबसे प्राचीन, सुंदर, दिव्य भाषा है, लिहाजा इस दैवीय भाषा को जीवित रखने की संपूर्ण जिम्मेदारी इस बार हम सब की है। यदि संस्कृत भाषा को हमारी छोटी सी लापरवाही के कारण जनगणना अधिकारी ने लुप्त भाषा मे गिन लिया तो इस संस्कृत के प्रचार – प्रसार और विकास के लिए सरकार की तरफ से निश्चित रूप से कोई फंड नहीं मिलेगा और फिर हम संस्कृत को हमेशा के लिए खो देंगे। इसलिए इस बार जनगणना पत्रक मे सतर्क रहकर संस्कृत का नाम अवश्य जोड़ें। आपके सम्मिलित प्रयासों से ही संस्कृत को जीवंत रखा जा सकेगा।’

‘हम सनातनियों ने स्वयं अपना नुकसान कर लिया है

उन्होंने कहा, ‘यह सर्वविदित है कि हम सनातनियों ने स्वयं अपना नुकसान कर लिया है, लेकिन इस नुकसान को फायदे में जरूर बदला जा सकता है। अभी देर नहीं हुई है, इसिलए जितना हो सके, उतना आपके सभी परिवारिजनों, मित्रों, स्नेही, व्यापारी संकुल के बने अनेकानेक ह्वाट्सएप ग्रुप में इस बात को अवश्य शेयर करें और लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी हमारी अपनी संस्कृत भाषा को बचा लें।’