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मोहन भागवत ने इंटरनेशनल टेंपल्स कन्वेशन के उद्घाटन पर कहा – ‘अब देश व संस्कृति के लिए त्याग करने का आ गया है समय’

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वाराणसी, 22 जुलाई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने अपने चार दिवसीय काशी प्रवास के अंतिम दिन शनिवार को यहां सिगरा स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में विश्व के सबसे बड़े इंटरनेशनल टेंपल्स कन्वेशन और एक्सपो का उद्घाटन किया। इस अवसर पर दुनियाभर के मंदिर प्रमुखों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मंदिरों के संचालन के लिए नई पीढ़ी को तैयार करना होगा। मंदिर पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक देश को एक सूत्र में पिरो सकते हैं।

मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा, ‘हर सनातनी का घर मंदिर है और इन मंदिरों को जोड़कर हम भारत को फिर से विश्वगुरू बना सकते हैं। जिसको धर्म का पालन करना है, वो धर्म के लिए सजग रहेगा। निष्ठा और श्रद्धा को जागृत करना है। छोटे स्थान पर छोटे से छोटे मंदिर को समृद्ध बनाना है। समय आ गया है कि अब देश और संस्कृति के लिए त्याग करें।’

सर्व समाज की चिंता करने वाला मंदिर होना चाहिए

संघ प्रमुख ने कहा मंदिर की व्याख्या करते हुए कहा कि आम जनता का दुख दूर करने वाला, विपत्ति में आसरा देने वाला, संस्कार देने वाला, शिक्षा देने वाला, उपासना और उनको परमतत्व की प्रेरणा देने वाला मंदिर होना चाहिए। सर्व समाज की चिंता करने वाला मंदिर होना चाहिए। देश के सभी मंदिरों का एकत्रीकरण समाज को जोड़ेगा, ऊपर उठाएगा, राष्ट्र को समृद्ध बनाएगा।

पूरे समाज को एक लक्ष्य लेकर चलाने के लिए मठ-मंदिर चाहिए

आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘हमारे मंदिर केवल पूजा स्थल ही नहीं वरन सेवा, चिकित्सा, शिक्षा का केंद्र रहे हैं। हमें अपने आसपास के छोटे-छोटे मंदिरों की सूची बनानी चाहिए। वहां रोज पूजा हो, सफाई रखी जाए। इसमें बड़े मंदिरों को मैं और मेरा का भाव छोड़कर आगे आना होगा। मंदिर हमारी परंपरा का अभिन्न अंग हैं। पूरे समाज को एक लक्ष्य लेकर चलाने के लिए मठ-मंदिर चाहिए।’

हम नई पीढ़ी को भी मंदिरों को संभालने का संस्कार दें

उन्होंने कहा, ‘हमारे मंदिर, आचार्य, देवस्थान, यति साथ चलते हैं, सभी सृजन के लिए हैं। समय आ गया है कि हम नई पीढ़ी को भी मंदिरों को संभालने का संस्कार दें। कला और कलाकारों को प्रतिष्ठित करें। समाज के कारीगर को प्रोत्साहन मिलेगा तो वह अपने को मजबूत करेगा। कला सत्यम, शिवम सुंदरम का संदेश देती है। मंदिरों की कारीगरी में हमें इसके दर्शन साक्षात होते हैं।’

लचीला कर्मकांड भारत की विशेषता है, उसे पूरी तरह आचरण में लाना चाहिए

भागवत ने कहा कि मंदिरों को समय के साथ बदलना चाहिए और अर्चकों को प्रशिक्षण देना चाहिए। लचीला कर्मकांड भारत की विशेषता है। उसको पूरी तरह से आचरण में लाना चाहिए। बलि और हिंसा समय के साथ बदली और यह अब नारियल फोड़कर पूजा होती है। देश-विदेश के सात सौ मंदिरों को एक साथ देखकर अच्छा लग रहा है। तीन दिनों के महासम्मेलन के दौरान जो भी योजना बनेगी उस पर श्वेत पत्र जारी किया जाएगा। भले ही सरकारी नियंत्रण वाले मंदिर इसको लागू ना कर पाएं, लेकिन बाकी मंदिर एक दूसरे से जुड़कर अपना विकास कर सकते हैं।

मंदिरों में भी चले गुरुद्वारे जैसा लंगर

आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रसाद लाड ने हर तीन साल में मंदिरों के महासम्मेलन की घोषणा की। उन्होंने कहा कि आम आदमी का पैसा आम आदमी तक पहुंचाया जाए। मंदिर के पैसों से मंदिरों का जीर्णोद्धार हो। जो लंगर गुरुद्वारे में चलता है, वो मंदिरों में भी चले। लंगर में भक्त प्रसाद और भूखे को भोजन मिलेगा। बुक बैंक, मेडिकल हेल्प, लंगर मैनेजमेंट करना होगा। स्वच्छता मंदिरों की प्राथमिकता होगी, फूल प्रसाद समेत सामग्री निस्तारण का फुल प्रूफ प्लान बनाया गया है जो परिवर्तन लाएगा।

मंच से पीएम मोदी का संदेश पढ़ा गया

मंदिरों के महासम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश पढ़ा गया। पीएम मोदी ने अपने संदेश में महासम्मेलन के आयोजन के लिए शुभकामनाएं व बधाई दी। काशी समेत देश के मंदिरों के विकास और विरासत की परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया। पीएम ने कहा कि काशी विश्वनाथ धाम, गंगा घाट का सुंदरीकरण देश और दुनियाभर के लिए उदाहरण है। सभी मंदिर मिलकर ही ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का सपना साकार करेंगे।