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मणिपुर के डीजीपी तलब, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी – पुलिस की जांच सुस्त और कानून-व्यवस्था ध्वस्त

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नई दिल्ली, 1 अगस्त। सुप्रीम कोर्ट में हिंसाग्रस्त मणिपुर के हालात और दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड निकालने वाली घटना के वायरल वीडियो को लेकर सुनवाई जारी है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने मणिपुर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को शुक्रवार दोपहर दो बजे व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होने का निर्देश दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जातीय हिंसा के संबंध में मणिपुर पुलिस द्वारा की गई जांच सुस्त बताया और कहा कि राज्य की कानून-व्यवस्था व मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो गई है।

लगभग तीन महीने तक एफआईआर नहीं दर्ज करने पर जताई हैरानी

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि घटनाओं के बाद लगभग तीन महीने तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी और हिंसा पर दर्ज 6000 एफआईआर के एवज में अब तक केवल कुछ ही गिरफ्तारियां हुई हैं।

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘प्रारंभिक आंकड़ों के आधार पर, प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि जांच में देरी हुई है। घटना और एफआईआर दर्ज करने, गवाहों के बयान दर्ज करने और यहां तक ​​कि गिरफ्तारियों के बीच काफी चूक हुई है। हम मणिपुर के डीजीपी को निर्देश देते हैं कि वह शुक्रवार दोपहर दो बजे अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हों और अदालत के सवालों का जवाब देने की स्थिति में हों।’

गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की पीठ मणिपुर हिंसा से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इसमें हिंसा के पीड़ितों द्वारा दायर याचिकाएं भी शामिल हैं।

6532 एफआईआर में 11 महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित

इस मामले में दो पीड़ित महिलाओं का तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पक्ष रहे हैं। वहीं राज्य की ओर से पेश हुए भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आज पीठ को सूचित किया कि 6532 एफआईआर दर्ज की गई हैं और उनमें से 11 महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित हैं।

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