Site icon hindi.revoi.in

मद्रास उच्च न्यायालय का अहम फैसला – विधवा को मंदिर में प्रवेश से रोका नहीं जा सकता

Social Share

चेन्नई, 5 अगस्त। मद्रास उच्च न्यायालय ने शनिवार को एक अहम फैसले में कहा कि किसी महिला को इस आधार पर मंदिर में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता कि वह विधवा है। उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि एक महिला की अपनी एक पहचान होती है।

मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक विधवा के मंदिर में प्रवेश करने से मंदिर में अशुद्धता होने जैसी पुरानी मान्यताएं राज्य में कायम हैं। न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने थंगमणि द्वारा दायर एक याचिका का निबटारा करते हुए चार अगस्त के अपने आदेश में यह टिप्पणी की।

याचिकाकर्ता थंगमणि ने मांग की थी कि इरोड जिले के नाम्बियूर तालुक में स्थित पेरियाकरुपरायण मंदिर में प्रवेश करने के लिए उन्हें और उनके बेटे को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पुलिस को निर्देश दिए जाएं।

न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने कहा कि भले ही सुधारक इन सभी मूर्खतापूर्ण मान्यताओं को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, फिर भी कुछ गांवों में इसका चलन जारी है। न्यायाधीश ने कहा कि ये हठधर्मिता और मनुष्य द्वारा अपनी सुविधा के अनुरूप बनाए गए नियम हैं और यह वास्तव में एक महिला को सिर्फ इसलिए अपमानित करता है कि उसने अपने पति को खो दिया है।

गौरतलब है कि याचिकाकर्ता थंगमणि नौ अगस्त को दो दिवसीय मंदिर महोत्सव में हिस्सा लेना चाहती थीं और उन्होंने पिछले महीने इस संबंध में ज्ञापन भी दिया था। याचिकाकर्ता के पति पेरियाकरुपरायण मंदिर में पुजारी हुआ करते थे।

पुलिस से निराशा मिलने पर उच्च न्यायालय पहुंची थीं थंगमणि

इस समय चल रहे तमिल ‘आदि’ महीने के दौरान, मंदिर समिति ने 9 और 10 अगस्त, 2023 को एक उत्सव आयोजित करने का निर्णय लिया था। याचिकाकर्ता और उनका बेटा उत्सव में भाग लेना और पूजा करना चाहते थे। लेकिन दो व्यक्तियों – अयवु और मुरली ने उन्हें यह कहते हुए धमकी दी कि विधवा होने के कारण उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए। थंगमणि ने पहले पुलिस सुरक्षा देने के लिए अधिकारियों को एक आवेदन दिया, लेकिन जब कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

Exit mobile version