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मद्रास हाई कोर्ट का फैसला – ‘तलाक सिर्फ कोर्ट के जरिए मिल सकता है, शरीयत काउंसिल को कोई अधिकार नहीं’

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मदुरै, 29 अक्टूबर। मद्रास हाई कोर्ट ने तलाक से संबंधित एक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि सिर्फ कानूनी तौर पर कोर्ट के जरिए ही किसी को तलाक मिल सकता है और जब तक कोर्ट आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा नहीं कर देता, तब तक दोनों को पति-पत्नी माना जाएगा। मद्रास हाई कोर्ट की मदुरेबेंच के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने अपने फैसले में यह भी कहा कि शरीयत काउंसिल को तलाक में मामले में फैसला देने का कोई अधिकार नहीं क्योंकि वह कोई अदालत नहीं बल्कि एक निजी निकाय है।’

मुस्लिम डॉक्टर जोड़े ने 2010 में इस्लामी रीति-रिवाज से की थी शादी

दरअसल, तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के एक मुस्लिम डॉक्टर जोड़े ने 2010 में इस्लामी रीति-रिवाज से शादी की थी। इस शादी से दोनों का एक बेटा भी है। 2018 में महिला ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। उसके बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 2021 में पति को घरेलू हिंसा से हुई मानसिक क्षति के लिए मुआवजे के तौर पर पांच लाख रुपये और गुजारा भत्ता व भरण-पोषण के लिए 25,000 रुपये प्रतिमाह देने का आदेश दिया था।

शरीयत काउंसिल ने जारी किया था तलाक का प्रमाणपत्र

वर्ष 2022 में सत्र न्यायालय ने भी इस आदेश को बरकरार रखा था, जिसके चलते महिला के पति ने मद्रास हाई कोर्ट में आपराधिक समीक्षा याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान पति की ओर से दस्तावेज दाखिल किए गए, जिसमें कहा गया कि अगस्त, सितम्बर और नवम्बर 2017 के महीने में तीन बार तलाक की नोटिस भेजी गई, जिसके बाद शरीयत काउंसिल ने स्वीकृति का प्रमाण पत्र जारी किया और इसी आधार पर उसने दूसरी महिला से शादी कर ली।

बिना कानूनी तलाक के दूसरी शादी की इजाजत नहीं

डॉक्टर की आपराधिक समीक्षा याचिका पर सुनवाई करने वाले मद्रास हाई कोर्ट की मदुरे बेंच के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने अपने फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पहली पत्नी गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। उन्होंने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता का धर्म मुस्लिम पुरुष को चार शादियां करने की इजाजत देता है, लेकिन कानून बिना कानूनी तलाक लिए दूसरी शादी की इजाजत नहीं देता, इसलिए पहली पत्नी को गुजारा भत्ता मांगने का पूरा अधिकार है।

जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि पहली दो तलाक नोटिस जारी की गई थे, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि तीसरी नोटिस जारी की गई थी। जज ने यह भी कहा कि पत्नी का दावा है कि उसकी शादी अब भी वैध है।

पति के तलाक का फैसला कोर्ट ने नहीं माना

जज ने यह भी कहा कि तलाक कानूनी तौर पर कोर्ट के जरिए ही मिल सकता है और जब तक कोर्ट आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा नहीं कर देता, तब तक दोनों को पति-पत्नी माना जाएगा। आपको कोर्ट में यह साबित करना होगा कि आपने कानून के मुताबिक तलाक दिया है अन्यथा पत्नी कोर्ट जा सकती है।

 

जस्टिस स्वामीनाथन ने अपने फैसले में लिखा, ‘एक हिन्दू या पारसी या यहूदी पति द्वारा अपनी पहली पत्नी से तलाक लिए बिना दूसरी शादी करना बहुविवाह का कृत्य है और इसे घरेलू हिंसा माना जा सकता है तथा पहली पत्नी को मुआवजा देना पड़ सकता है। यही कानून मुस्लिम जोड़े पर भी लागू होता है।

पत्नी को भरण-पोषण मांगने का अधिकार

न्यायाधीश ने कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति चार शादियां करने के लिए भी स्वतंत्र है। हालांकि पत्नी के पास इसे रोकने के लिए कोई कानूनी उपाय नहीं है, लेकिन पत्नी को भरण-पोषण मांगने और वैवाहिक बंधन का हिस्सा बनने वाले घरेलू काम न करने का अधिकार है। जय ने यह भी कहा कि पति ने इस बात का कोई सबूत नहीं दिया कि विशेष मामले में तीसरा तलाक दिया गया था।

जस्टिस स्वामीनाथन ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि तमिलनाडु तौहाद जमात की शरीयत काउंसिल ने 29 नवम्बर, 2017 को तलाक प्रमाणपत्र जारी किया था। उन्होंने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि याचिकाकर्ता की पत्नी ने सहयोग नहीं किया था। यह देखते हुए कि केवल राज्य द्वारा गठित अदालतें ही तलाक दे सकती हैं, उन्होंने कहा कि शरीयत काउंसिल एक निजी निकाय है न कि अदालत।

 

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