Site icon hindi.revoi.in

कानून मंत्री किरेन रिजिजु ने फिर उठाए सवाल – कॉलेजियम सिस्‍टम के कारण बहुत व्यस्त रहते हैं जज

Social Share

नई दिल्‍ली, 14 जनवरी। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजु ने कॉलेजियम सिस्‍टम पर एक बार फिर सवाल उठाए हैं। उन्‍होंने कहा है कि इस सिस्‍टम के कारण जज बहुत ज्‍यादा व्‍यस्‍त रहते हैं और उनका कीमती समय निकल जाता है। इससे जज के तौर पर उनकी जिम्‍मेदारी पर असर पड़ता है।

जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी तरह से प्रशासनिक काम

किरेन रिजिजु ने यह भी स्‍पष्‍ट किया कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी तरह से प्रशासनिक काम है। संविधान इस बारे में स्‍पष्‍ट करता है कि इसमें जजों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए। बेशक, उनका परामर्श लिया जा सकता है। गौरतलब है कि पिछले काफी समय से कॉलेजियम सिस्‍टम को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार आमने-सामने हैं। किरेन रिजिजु इस दौरान कॉलेजियम सिस्‍टम की लगातार खामियों को हाईलाइट करते रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में बनाया था कॉलेजियम सिस्‍टम

केंद्रीय मंत्री ने अनुसार 1993 में कॉलेजियम सिस्‍टम बनाकर सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों को खत्‍म कर दिया। संविधान स्‍पष्‍ट रूप से कहता है कि जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में न्‍यायाधीशों को शामिल नहीं होना चाहिए। यह काम विधायिका है। इसमें सिर्फ जजों के परामर्श की बात कही गई है। हालांकि, अब न्‍यायपालिका जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में पूरी तरह से शामिल है।

1993 में सेकेंड जजेज केस (1993) में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि आर्टिकल 124 में ‘कंसल्टेशन’ (परामर्श) का मतलब ‘कॉनकरेंस’ यानी सहमति है। ऐसे में राष्‍ट्रपति के लिए जजों की नियुक्ति के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेना अनिवार्य है। उसी साल कॉलेजियम सिस्‍टम की शुरुआत हुई थी।

एमओपी को नरम करने पर सरकार के लिए होगी समस्या

रिजिजु बोले कि अगर सुप्रीम कोर्ट आदेश के जरिए (मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर) एमओपी को नरम करना चाहता है तो फिर सरकार के लिए समस्‍या होगी। सरकार सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध कर रही है कि वह ऐसा नहीं करे। कानून मंत्री का यह बयान कलीजियम सिस्‍टम पर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच तनातनी के बीच आया है। कॉलेजियम सिस्‍टम पर सरकार के विचारों से सुप्रीम कोर्ट हमेशा ही अलग राय जताता रहा है।

Exit mobile version