नई दिल्ली, 18 अप्रैल। तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी न देने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से राजनीतिक गलियारे में नई बहस छिड़ गई है। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस फैसले पर सख्त टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट को ‘सुपर संसद’ करार दिया। अब राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने उप राष्ट्रपति धनखड़ पर तंज कसते हुए उनके बयान का जवाब दिया है।
कपिल सिब्बल ने उप राष्ट्रपति की टिप्पणी पर पलटवार करते हुए कहा, ‘धनखड़ जी को यह मालूम होना चाहिए कि राज्यपाल और राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह-मशविरा के मुताबिक काम करते हैं। वह (उप राष्ट्रपति) पूछते हैं कि राष्ट्रपति की शक्तियों को कैसे कम किया जा सकता है, लेकिन शक्तियों को कौन कम कर रहा है? मैं कहता हूं कि एक मंत्री को राज्यपाल के पास जाना चाहिए और दो साल तक वहां रहना चाहिए, ताकि वे सार्वजनिक महत्व के मुद्दे उठा सकें, क्या राज्यपाल उन्हें अनदेखा कर पाएंगे? इसलिए यह कहना कि किसी की शक्ति में कटौती हो रही है, मेरी राय में सही नहीं है। ’
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संसद कोई विधेयक पारित कर देती है तो क्या राष्ट्रपति इसे टाल सकते हैं?
सिब्बल ने कहा कि किसी भी राज्यपाल द्वारा बिल को लटकाना विधायिका के अधिकार में हस्तक्षेप की तरह है। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, ‘यह असल में विधायिका की सर्वोच्चता में दखलंदाजी है, ये तो उल्टी बात है। यदि संसद कोई विधेयक पारित कर देती है तो क्या राष्ट्रपति इसे लागू करने को अनिश्चित काल के लिए टाल सकते हैं? अगर इस पर हस्ताक्षर नहीं भी किए गए, तो क्या किसी को इसके बारे में बात करने का अधिकार नहीं है?’
दरअसल, जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि कोर्ट को सुपर संसद के रूप में काम नहीं करना चाहिए क्योंकि कानून बनाना संसद का काम है। उन्होंने पूछा कि कोई भी कोर्ट राष्ट्रपति को कैसे आदेश दे सकता है, आखिर हमारा देश कहां जा रहा है, हमें बहुत ही संवेदनशील होने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि संविधान ने कानून की व्याख्या करने का अधिकार कोर्ट को दिया है, लेकिन उसके लिए पांच जजों को बैठकर निर्णय करना होता है।
दोनों ही सदनों के अध्यक्ष किसी पार्टी के प्रवक्ता नहीं होते
कपिल सिब्बल ने कहा कि दोनों ही सदनों के अध्यक्षों का काम किसी भी पार्टी के लिए प्रवक्ता की तरह काम करना नहीं होता है। उन्हें निष्पक्षता बनाए रखने की जरूरत होती है, इसलिए उनका आसन बीच में होता है। उन्होंने कहा, ‘हर कोई जानता है कि लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी बीच में होती है। वह सदन के अध्यक्ष होते हैं, किसी एक पार्टी के अध्यक्ष नहीं। वे मतदान भी नहीं करते हैं, वे केवल तभी मतदान करते हैं, जब पक्ष एवं विपक्ष को बराबर मत मिलते हैं। उच्च सदन के साथ भी यही बात है। आप विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच समान दूरी पर हैं।‘

