प्रयागराज, 14 मार्च। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 2017 में एक मस्जिद को उसके परिसर से हटाने के आदेश के खिलाफ अपील सोमवार को खारिज कर दी और मस्जिद को हटाने के हाई कोर्ट के आदेश की पुष्टि कर दी।
मस्जिद की प्रबंधन समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘मस्जिद 1950 के दशक से है और इसे यूं ही हटने के लिए नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि 2017 में सरकार बदली और सब कुछ बदल गया। नई सरकार बनने के 10 दिन बाद एक जनहित याचिका दायर कर दी गई। अगर सरकार हमें जमीन देते हैं तो हमें वैकल्पिक स्थान पर स्थानांतरित होने में कोई समस्या नहीं है।’
वहीं उच्च न्यायालय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह पूरी तरह से धोखाधड़ी का मामला है। उन्होंने कहा कि दो बार नवीनीकरण के आवेदन आए थे और इस बात की खबर नहीं थी कि मस्जिद का निर्माण किया गया था और इसका उपयोग जनता के लिए किया गया था।
उन्होंने नवीनीकरण की मांग करते हुए कहा कि यह आवासीय उद्देश्यों के लिए आवश्यक है। केवल यहां नमाज अदा करने से इसे मस्जिद नहीं बना देंगे। अगर सुप्रीम कोर्ट के बरामदे या हाई कोर्ट के बरामदे में सुविधा के लिए नमाज की अनुमति दी जाती है तो यह मस्जिद नहीं बनेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले उत्तर प्रदेश सरकार से मस्जिद को स्थानांतरित करने के लिए जमीन का एक टुकड़ा देने की संभावना तलाशने को कहा था। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उसके पास मस्जिद को स्थानांतरित करने के लिए जमीन का कोई वैकल्पिक भूखंड नहीं है और राज्य इसे किसी अन्य क्षेत्र में स्थानांतरित करने पर विचार कर सकता है। यह भी कहा था कि पार्किंग के लिए पहले से ही जगह की कमी है।