वॉशिंगटन, 8 सितम्बर। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने संकटग्रस्त अफगानिस्तान में मंगलवार को इस्लामिक कट्टरपंथी तालिबान की ओर से अंतिम सरकार के गठन के कुछ घंटे बाद चीन को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि उसमें और पाकिस्तान, ईरान व रूस में कोई अंतर नही है और वह अब तालिबान से समझौते की कोशिश में लगा हुआ है।
पाकिस्तान, रूस, ईरान और चीन में कोई अंतर नहीं
ह्वाइट हाउस में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाइडेन ने कहा, ‘चीन को तालिबान के साथ एक असल समस्या है तो मुझे यकीन है कि वह तालिबान के साथ कुछ समझौता करने की कोशिश करने जा रहा है। जैसा पाकिस्तान, रूस और ईरान करते हैं। वे सभी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें अब क्या करना है।’
चीन की तालिबान के साथ असल समस्या है
तालिबान को चीन से पैसा मिलने के बारे में पूछे जाने पर बाइडेन ने कहा कि ड्रैगन भी पाकिस्तान, रूस और ईरान की ही तरह यह जानने की कोशिश कर रहा है कि तालिबान द्वारा घोषित नई सरकार पर सबसे अच्छी प्रतिक्रिया कैसे दी जाए। उन्होंने कहा, ‘चीन की तालिबान के साथ असल समस्या है और इस प्रकार उनके पास यह विश्वास करने का कारण है कि अफगानिस्तान के नए शासकों के साथ चीन कुछ समझौता करेगा।’
तालिबान के नए मंत्रिमंडल को लेकर अमेरिका चिंतित
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का यह बयान तालिबान द्वारा घोषित सरकार के कुछ घंटे बाद ही आया है। दरअसल, अमेरिका तालिबान के नए मंत्रिमंडल के गठन के बारे में काफी चिंतित है। दरअसल, इस कैबिनेट में एक भी महिला को जगह नहीं मिली। इसके विपरीत उन कट्टर आतंकियों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है, जो लगभग 20 वर्षों तक खूनी संघर्ष में लिप्त रहे हैं। कैबिनेट का एक सदस्य तो संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) की ‘मोस्ट वांटेड’ लिस्ट में है और इसके सिर पर 10 मिलियन डॉलर तक का ईनाम रखा गया है।
चीन ने तालिबान को मान्यता देने की पहले ही कर ली थी तैयारी
दूसरी ओर यह भी स्पष्ट है कि चीन नए तालिबान शासन को अपने सहयोगियों में एक के रूप में पेश करने की तैयारी कर रहा है। उसने काबुल के पतन के पहले ही तालिबान को युद्धग्रस्त राष्ट्र के वैध शासक के रूप में मान्यता देने की तैयारी कर ली थी।
इसके अलावा, अशरफ गनी शासन के गिरने से कुछ हफ्ते पहले, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने समूह के साथ ‘मैत्रीपूर्ण संबंध’ विकसित करने के लिए मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से मुलाकात की थी।