नई दिल्ली, 6 जून। भारत सहित दुनिया के कई देशों में व्याप्त कोविड-19 महामारी के बीच कथित ‘वैक्सीन पासपोर्ट’ की शुरुआत पर नई दिल्ली ने कड़ी ऑपत्ति जताते हुए कहा है कि इस पहल से भेदभाव उत्पन्न हो सकता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने शुक्रवार को जी7 देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ हुई बैठक में वैक्सीन पासपोर्ट का कड़ा विरोध करते हुए कहा, ‘आबादी के हिसाब से वैक्सीन कवरेज अभी विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में कम है। इस तरह की पहल अत्यधिक भेदभावपूर्ण साबित हो सकती है।’
गौरतलब है कि कई देशों ने यह नियम लागू कर दिया है, जिसके तहत यदि आप किसी दूसरे देश में जा रहे हैं तो आपको वैक्सीन सर्टिफिकेट साथ रखना होगा। चूंकि अब भिन्न देशों में एंट्री के लिए यह जरूरी किया जा रहा है, इसलिए इसे ‘वैक्सीन पासपोर्ट’ कहा जा रहा है। विश्व के कई देश इसके समर्थन में हैं,लेकिन भारत ने इसे लेकर अपना विरोध जताया है।
दिलचस्प तो यह है कि भारत जी7 का हिस्सा नहीं है। अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान और इटली इस ग्रुप के सदस्य हैं। हालांकि ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भारत को इस बैठक में बतौर मेहमान आमंत्रित किया था। भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को भी मेहमान देश के तौर पर न्यौता दिया गया था।
डॉ. हर्षवर्धन ने बैठक में यह भी कहा कि महामारी के इस दौर में वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाना और उसकी आपूर्ति सुनिश्चित करना ज्यादा जरूरी है। उन्होंने कहा, ‘भारत में करीब 60 फीसदी वैक्सीन बनाई जाती हैं और दुनिया की क्षमता और आपूर्ति बढ़ाने में मदद करने के लिए पर्याप्त है।’