इम्फाल, 25 जून। इम्फाल ईस्ट के इथम गांव में महिलाओं के नेतृत्व वाली भीड़ और सुरक्षा बलों के बीच गतिरोध के बाद सेना ने नागरिकों की जान जोखिम में न डालने का ‘परिपक्व फैसला’ लिया और बरामद किए गए हथियारों व गोला-बारूद के साथ वहां से हट गई। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी।
सुरक्षा बलों ने इथम गांव को शनिवार को घेर लिया था, जहां प्रतिबंधित उग्रवादी समूह कांगलेई योल कान-ना लुप (केवाईकेएल) के 10 से अधिक सदस्य छिपे हुए थे। इस काररवाई के बाद भीड़ और सैनिकों के बीच गतिरोध उत्पन्न हुआ था। केवाईकेएल एक मेइती उग्रवादी समूह है, जो 2015 में छह डोगरा इकाई पर घात लगाकर किए गए हमले सहित कई हमलों में शामिल रहा है।
महिलाओं के नेतृत्व में भीड़ ने सेना का रास्ता रोका
अधिकारियों ने कहा कि इथम में गतिरोध शनिवार को पूरे दिन चलता रहा, हालांकि ‘महिलाओं के नेतृत्व वाली उग्र भीड़ के खिलाफ बल के इस्तेमाल और उससे लोगों के हताहत होने की बात को ध्यान में रखते हुए अभियान के कमांडर द्वारा परिपक्व निर्णय लिए जाने के बाद यह सामप्त हो गया।’
प्राप्त जानकारी के अनुसार गांव में छिपे लोगों में स्वयंभू लेफ्टिनेंट कर्नल मोइरांगथेम तंबा उर्फ उत्तम भी शामिल था, जो एक वांछित उग्रवादी है और जिसे डोगरा हमले का मुख्य साजिशकर्ता माना जाता है। उन्होंने बताया कि इथम में महिलाओं के नेतृत्व में 1,500 लोगों की भीड़ ने सेना की टुकड़ी को घेर लिया था और उसे अभियान को अंजाम देने से रोका था।
अधिकारियों ने कहा, ‘सुरक्षा बलों ने बार-बार आक्रामक भीड़ से उन्हें कानून के तहत काररवाई करने देने की अपील की, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद सेना ने मणिपुर में व्याप्त अशांति के कारण जानमाल के अतिरिक्त नुकसान से बचने के लिए वहां से हटने का निर्णय किया। मणिपुर में मेइती और कुकी समुदाय के बीच मई की शुरुआत में भड़की जातीय हिंसा में 120 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
गौरतलब है कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें शुरू हुई थीं। मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेइती समुदाय की है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है। वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और यह मुख्यत: पर्वतीय जिलों में रहती है।