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योग गुरु रामदेव पर आईएमए का आरोप – खुद एलोपैथी इलाज लेते हैं, लेकिन उसके खिलाफ झूठ फैला रहे

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नई दिल्ली, 22 मई। चिकित्सकों की राष्ट्रीय संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA)  ने योग गुरु बाबा रामदेव पर एलोपैथी इलाज के खिलाफ झूठ फैलाने का आरोप लगाया है और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को पत्र लिखकर योग गुरु के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की है। इस क्रम में आईएमए ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे रामदेव के एक वीडियो का जिक्र किया है, जिसमें बाबा एलोपैथी को बकवास और दिवालिया साइंस कहते नजर आ रहे हैं।

आईएमए ने डॉ. हर्षवर्धन को लिए अपने पत्र में कहा है, ‘सभी इस बात को जानते हैं कि बाबा रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण बीमार होने पर खुद एलोपैथी इलाज लेते हैं। इसके बाद भी अपनी अवैध दवा को बेचने के लिए वे एलोपैथी के बारे में लगातार भ्रम फैला रहे हैं। इससे एक बड़ी आबादी पर असर पड़ रहा है। उन्होंने कोरोना के लिए बनाई गई अपनी दवा की लॉन्चिंग के दौरान भी डॉक्टरों को हत्यारा कहा था। कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्री भी मौजूद थे।’

रामदेव ने स्वास्थ्य मंत्री और डीजीसीआई की साख को चुनौती दी

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने पत्र में लिखा है, ‘बाबा रामदेव ने यह दावा किया है कि रेमडेसिविर, फेवीफ्लू और भारत के औषधि महानियंत्रक (डीजीसीआई) से अप्रूव दूसरी ड्रग्स की वजह से लाखों लोगों की मौत हुई है। यह बयान देकर उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री व डीजीसीआई की साख को चुनौती दी है। कोरोना मरीजों के इलाज में रेमडेसिविर के इस्तेमाल की मंजूरी केंद्र की संस्था सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) ने जून-जुलाई 2020 में दी थी।’

योग गुरु के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग

आईएमए ने स्वास्थ्य मंत्री से मांग की है कि एलोपैथी दवाओं के बारे में भ्रम फैलाने और लाखों लोगों की जान खतरे में डालने के लिए बाबा रामदेव पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। रामदेव ने फेवीपिराविर को बुखार की दवा बताया था। इससे पता चलता है कि मेडिकल साइंस को लेकर उनका ज्ञान कितना कम है।

इस पत्र में आईएमए ने यह भी लिखा है कि कोरोना महामारी के चलते देश इस वक्त हेल्थ इमजेंसी से गुजर रहा है। संक्रमण की वजह से अब तक लाखों लोगों की जान जा चुकी है। डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ सरकार के साथ मिलकर इसे रोकने की कोशिश में लगे हुए हैं। कोरोना मरीजों को बचाते-बचाते हजारों डॉक्टर भी संक्रमित हुए हैं। इस दौरान एक वर्ष के भीतर लगभग 1,200 डॉक्टरों की जान भी गई है।