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बाबा विश्वनाथ मंदिर विध्वंस की सामने आई सच्चाई! औरंगजेब की सबसे पुस्तक ‘मासिर-ए-आलमगीरी’ में है यह दावा

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नई दिल्ली। प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर के सम्बन्ध में कई किताबें प्रमाण के तौर पर उपलब्ध हैं जो ज्ञानवापी विवादित ढांचे में जहां अब शिवलिंग प्राप्त हुआ है वहीं पर बाबा विश्वनाथ के अविमुक्त रूप में स्थापित होने को प्रमाणित करती हैं। वहीं मंदिर के तोड़े जाने का एक महत्वपूर्ण प्रमाण ‘मा-असीर-ए-आलमगीरी’ नाम की पुस्तक भी है। यह पुस्तक औरंगजेब के दरबारी लेखक सकी मुस्तईद खान ने 1710 में लिखी थी। इसी किताब में उस शाही फरमान का उल्लेख है, जिसमें औरंगजेब ने विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के लिए जारी किया था। किताब के मुताबिक, औरंगजेब ने 8 अप्रैल 1669 को बनारस में सभी पाठशालाओं और मंदिरों को तोड़ने का आदेश जारी किया था। 2 सितंबर को औरंगजेब को काशी विश्वनाथ मंदिर टूट जाने की जानकारी मिली थी, यानी बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर को 8 अप्रैल 1669 से 2 सितंबर 1669 के बीच तोड़ा गया था।

फारसी में लिखी गई इस किताब का अनुवाद सर जदुनाथ सरकार ने किया था। यह किताब एशियाटिक सोसाइटी कोलकाता में भी उपलब्ध है। साथ ही मूल पांडुलिपि भी यहां है। किताब के मुताबिक, औरंगजेब ने 8 अप्रैल 1669 को बनारस में सभी पाठशालाओं और मंदिरों को तोड़ने का आदेश जारी किया था। इसके बाद काशी विश्वनाथ मंदिर टूट जाने की जानकारी भी इस किताब में दी गई है। किताब ‘मासिर-ए-आलमगिरी’ का पहला भाग औरंगजेब के जिंदा रहते हुए लिखा गया था। औरंगजेब की मौत के बाद किताब को पूरा किया गया था। ब्रिटिश शासन के दौरान प्रसिद्ध इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार ने इसका अनुवाद किया था।

मंगलवार 8 अप्रैल 1669 को ग्रहण लगा था और प्रथा के मुताबिक, प्रार्थना सभा की गई और फिर भिक्षा का वितरण किया गया। इस दौरान औरंगजेब को पता चला कि टेट्टा, मुल्तान के प्रांतों में और विशेष रूप से बनारस में ब्राह्मण अपने स्कूलों में अपनी झूठी किताब पढ़ाते थे। हिंदू और मुस्लिम समुदाय के छात्र दूर-दूर से इनके पास शिक्षा लेने के लिए आते थे। इसके बाद इस्लाम की स्थापना में जुटे औरंगजेब ने सभी प्रांतों के गवर्नरों को हिंदुओं (काफिरों) के स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दे दिया। साथ ही हिंदुओं के धर्म के शिक्षण संस्थानों को बंद करने को कहा।