नई दिल्ली, 26 मई। कोरोना से संक्रमित व्यक्ति की मौत के 12 से 24 घंटे बाद वायरस नाक और मुंह की गुहाओं (नेजल एवं ओरल कैविटी) में सक्रिय नहीं रहता, जिसके कारण मृतक से संक्रमण का खतरा अधिक नहीं होता है। ऐसा फोरेंसिक विज्ञान विशेषज्ञ और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में फोरेंसिक विभाग के प्रमुख डॉ. सुधीर गुप्त का मानना है।
डॉ. सुधीर ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘मौत के बाद 12 से 24 घंटे के अंतराल में लगभग 100 शवों की कोरोना वायरस संक्रमण के लिए फिर से जांच की गई थी, जिनकी रिपोर्ट नकारात्मक आई। मौत के 24 घंटे बाद वायरस नाक और मुंह की गुहाओं में सक्रिय नहीं रहता है।’
गौरतलब है कि पिछले एक वर्ष में एम्स में फोरेंसिक मेडिसिन विभाग में ‘कोविड-19 पॉजिटिव मेडिको-लीगल’ मामलों पर एक अध्ययन किया गया था। इन मामलों में पोस्टमॉर्टम किया गया था, जिसके निष्कर्ष के आधार पर डॉ. सुधीर ने यह जानकारी दी है।
कोरोना से मृतक व्यक्ति की अस्थियों और राख का संग्रह पूरी तरह सुरक्षित
उन्होंने कहा कि सुरक्षा की दृष्टि से पार्थिव शरीर से तरल पदार्थ को बाहर आने से रोकने के लिए नाक और मुंह की गुहाओं को बंद किया जाना चाहिए। एहतियात के तौर पर ऐसे शवों को संभालने वाले लोगों को मास्क, दस्ताने और पीपीई किट पहननी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अस्थियों और राख का संग्रह पूरी तरह से सुरक्षित है क्योंकि अस्थियों से संक्रमण के फैलने का कोई खतरा नहीं है।
स्मरण रहे कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने मई, 2020 में जारी कोविड-19 से हुई मौत के मामलों में मेडिको-लीगल ऑटोप्सी के लिए मानक दिशानिर्देशों में सलाह दी थी कि कोविड-19 से मौत के मामलों में फोरेंसिक पोस्टमार्टम के लिए चीर-फाड़ करने वाली तकनीक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इसकी वजह यह है कि अत्यधिक एहतियात बरतने के बावजूद, मृतक के शरीर में मौजूद द्रव व किसी तरह के स्राव के संपर्क में आने से मुर्दाघर के कर्मचारियों को इस जानलेवा रोग की चपेट में आने का खतरा हो सकता है।