अहमदाबाद, 1 जुलाई। अगर आपको कोई कहे कि भारत में पत्रकारिता शुरू करने वाला व्यक्ति एक भारतीय नहीं पर अंग्रेज था तो क्या आप मानेंगे? क्या आपको कहा जाए कि गुजराती भाषा में भी पत्रकारिता शुरू करने वाला व्यक्ति एक पारसी था तो आप मानेंगे? दोनों किस्सों में आपको इस सच्चाई को मानना पड़ेगा, क्योंकि वास्तव में ऐसा ही हुआ था। भारत का पहला अखबार “बंगाल गैजेट” जेम्स अगस्तस हीकी ने शुरू किया था और गुजराती भाषा का पहला अखबार “श्री मुमबाईना समाचार” भी एक पारसी बावा ने १ जुलाई १८२२ को शुरू किया था। आज यानी १ जुलाई २०२१ को यह अखबार १९९ साल की शानदार यात्रा पूर्ण करके २०० वे साल में प्रवेश कर रहा है, साथ ही गुजराती पत्रकारिता भी। उस पारसी सज्जन का नाम था फर्दूनजी मर्जबान। आइए हम भी उनके इस अद्वितीय कारनामे का रोमांचक इतिहास जानते हैं, और मुंबई समाचार की पत्रकारिता को समझते हैं.
फर्दूनजी का जन्म १७८७ में सूरत में हुआ था। १२ साल की उम्र तक उन्होंने पिता के पास पारसी धार्मिक क्रियाकलाप एवं गुजराती और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। पंडित जी के पास संस्कृत सीखे और भरूच के हकीम के पास यूनानी चिकित्सा भी। उन्हें पढ़ाई करने मुंबई जाना था पर पिताजी कुछ और चाहते थे। १२ साल की उम्र में वह अपने किताबें उठाकर मुंबई भाग खड़े हुए, लेकिन रास्ते में ही पकड़े गए। खैर ६ साल बाद फिर से यानी कि १८०५ में पिता के दोस्त के घर शादी में गए और फिर वही के होकर रह गए।
उनकी इच्छा प्रिंटिंग प्रेस शुरू करने की थी तो और कुछ छोटे-मोटे काम करते हुए उन्होंने गुजराती टाइप का पूरा सेट लोहे पर तैयार किया, उस पर तांबे की पट्टियां लगाई और शीशा डालकर टाइप तैयार किए। सन १८१२ में अपने छोटे से घर में उन्होंने गुजराती भाषा का पहला प्रिंटिंग प्रेस शुरू किया जिसे लोग “गुजराती छापोखानो” के नाम से पहचाने लगे। सन १८१४ में उन्होंने भारत का पहला पंचांग उसी प्रेस में छापा। दूसरे साल “फलादीश” नाम की पहली गुजराती किताब भी छपी, इससे गुजरातीयों में पढ़ने की रुचि बढ़ी।
उन दिनों मुंबई में दो-तीन अंग्रेजी अखबार थे पर एक भी भारतीय भाषा का अखबार नहीं था। फर्दूनजी ने यह शुरुआत की और सिर्फ पश्चिम भारत का ही नहीं किंतु देश का पहला दैनिक अखबार “मुंबई समाचार” शुरू किया। उसके लिए विशेष टाइप बनवाए, कोलकाता से अंग्रेजी, फारसी और मराठी टाइप मंगवाए। उनके इस प्रयास में मुंबई के गवर्नर एलफिंस्टन का काफी सहयोग था।
मुंबई समाचार शुरुआत में साप्ताहिक था, जिसका मासिक सब्सक्रिप्शन ₹ २ था। अखबार शुरू होने से पहले उसके डेढ़ सौ सब्सक्राइबर तय हो गए थे, जिसमें १४ अंग्रेज, ८ हिंदू, ६ मुसलमान और ६७ पारसी थे। २० पेज का अखबार निकला था, जिसके स्थापक, मालिक, प्रिंटर, संपादक सब कुछ फर्दूनजी ही थे। करीब करीब १० साल तक सप्ताहिक के स्वरूप में छपने के बाद १८३२ में वह दैनिक अखबार में परिवर्तित हुआ। थोड़े समय बाद आर्थिक समस्याओं के चलते कुछ वक्त हफ्ते में २ दिन छपा। पर इसवी सन १८५५ में फिर से दैनिक में परिवर्तित हुआ जो आज तक चल रहा है।
इस अखबार की भाषा भी बेहद सरल थी। उसकी शैली में पारसी बोली का तड़का था। क्योंकि पारसी जैसे बोलते थे वैसा ही गुजराती लिखते भी थे। उस वक्त आज के जैसे रिपोर्टर नहीं थे तो पाठकों को ही विनती की गई थी कि वह खबरें भेजें। उस वक्त के सामाजिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य में मुंबई में कौन से अंग्रेज आए, कौन गए, जहाजों का आना-जाना, अफीम की खरीदी-बिक्री की जानकारी, प्रदेश में हुई कुछ घटनाये वगैराह खबरें छपती थी। उसके समकालीन अखबारों में यह खबरें नहीं आती थी इसलिए मुंबई समाचार सामान्य लोगों में और मुंबई के व्यापारियों में शुरू से ही लोकप्रिय हो गया। उस वक्त भी और आज भी एक बहुत बड़े गुजराती भाषी वर्ग के लिए मुंबई में “छापु” याने “समाचार” और “समाचार” याने “छापु”। अपने अखबार के पहले ही इश्यू से फर्दूनजी ने जनमत और पत्रकारिता के स्वतंत्र पर बल दिया था, जिसका आज भी उतनी ही शिद्दत से पालन किया जाता है।
फर्दूनजी सिर्फ पत्रकार ही नहीं थे वह समाज सुधारक भी थे, व्यापारी भी थे। उन्होंने कई किताबें भी छापी थी। वह सिद्धांतों में माननेवाले और प्रमाणिक व्यक्ति थे। सन १८३० के बाद उनके व्यापार और आर्थिक व्यवहारों में संकट आए। सन १८३२ में वह दमन में जाकर बसे। पर उन्होंने करीब १० साल मुंबई समाचार अच्छे से चलाया। उसके बाद अब तक करीब नौ अलग-अलग मालिकों के हाथ मे यह अखबार गया, चला और फलता फूलता गया।
इन दो शताब्दियों में मुंबई समाचार ने ना तो अपनी पत्रकारिता की पॉलिसी बदली हैं, ना ही अपनी साख को आंच आने दी है। वर्तमान मालिक होरमस्जी कामा उसे एक मिशन की तरह चलाते हैं। वह कहते हैं कि हम अपने पाठकों के साथ कभी धोखाधड़ी नहीं करते और ना ही करेंगे। हम अंधश्रद्धा को बढ़ावा देनेवाले विज्ञापन को नहीं छापते। हम मानते हैं कि जब तक आपका कंटेंट लोगों को पसंद हैं तब तक आप हैं। मुंबई समाचार आज भी ₹१० में बिकनेवाला मुंबई का सबसे महंगा अखबार है, पर उसका अपना एक पाठक वर्ग है जिसकी सुबह मुंबई समाचार पढ़े बिना कभी शुरू नहीं होती। हालांकि कोरोनाकाल में उनके सरकुलेशन पर काफी असर हुआ पर फिर भी २०२०-२१ में मुनाफा करनेवाले बहुत कम अखबारों में एक मुंबई समाचार भी था। अखबार के मालिकोने में एक भी मुलाजिम को नौकरी से नहीं निकाला, उन्होंने अपने अखबार के पन्ने कम किए, कॉस्ट कंट्रोल की, अखबार की कवर प्राइज दो रूपये बधाई पर डेढ़ सौ कर्मचारियों के परिवार में सब की रोजी-रोटी चालू रखी। अपने पाठकों का भरोसा टूटने नहीं दिया। कामा कहते है की हम बहुत महत्वकांक्षी नहीं है पर अपने स्थापित मूल्यों का जतन करते है और पुरखों ने जो मार्ग दिखाया है हम उसी पर चलते रहेंगे। जहां तक संपादकीय नीति का सवाल है संपादक नीलेश दवे के अनुसार मैनेजमेंट उनके एडिटोरियल जजमेंट पर पूरा भरोसा करता है और आज तक उन्हें कभी भी किसी भी समाचार को लेकर मालिकों की ओर से फोन नहीं आया।
इस १९९ साल की यात्रा में मुंबई समाचार ने मुंबई और आसपास के इलाके में रहने वाले गुजराती भाषीओं के लिए बहुत कुछ किया। स्वातंत्र्य संग्राम में गांधीजी समेत बड़े-बड़े नेताओं की नजर भी इस अखबार के समाचारों पर रहती थी। गुजराती भाषा के व्याप को बढ़ाने के लिए पुस्तक मेलों का भी आयोजन किया जाता रहा है और अखबार ने अपनी लोकप्रियता बरकरार रखी है। फर्दूनजी मर्ज़बान ने शुरू किया हुआ यह साहस आज इतने लंबे समय से चलने वाले अखबारों में एशिया में पहले और दुनिया में तीसरे नंबर पर शायद इसीलिए अबतक टीका हुआ है।