अहमदाबाद: आज समाज में चारो ओर चिंता ही चिंता दिखाई देती नजर आ रही है। science और technology बहुत आगे बढ़ गये हैं, पर उनके साथ ही आगे बढ़ी हुई दुनिया की साइड इफ़ेक्ट्स भी आगे बढ़ गये है। आज माँ-बाप ज्यादा पढ़े-लिखे होने के कारण वो अपने बच्चो को इंग्लिश तो फ़टाफ़ट पढ़ा लेते है, सेल्फ़ डिसिप्लिन भी सिख लेते है, पर जीवन के वो पाठ नहीं पढ़ा पाते, जो बच्चों के लिये बहुत जरुरी है। जो हमारे अवतारों और ऋषि मुनि ने बताये है। बच्चा दो साल का हो जाता है और मोबाइल आसानी से चला लेता है, पांच साल का हो जाता है और लैपटॉप चला लेता है, गूगल से सब कुछ खोज लेता है, और तभी माँ-बाप खुशी से झूम उठते हैं, गर्व महसूस करते हैं, पर वहीं बच्चा जब थोडा बड़ा हो जाता है तो वह अपने माँ-बाप को इग्नोर करने लगता है और शादी के बाद अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम में भेज देता है। तब माँ-बाप के दिमाग में एक प्रश्न आता है और वो प्रश्न है, इनकी परवरिश में हमने कहाँ कमी रखी थी—-?
Actual में माँ-बाप ने उसकी परवरिश में कोई कमी रखी ही नहीं होती लेकिन तरीका शायद गलत हो सकता है। हमारे जमाने में स्कूल में हमें कुछ नहीं आता तब छड़ी लगती थी, थप्पड़ लगता था, आज अगर बच्चे को टीचर थप्पड़ लगाते हैं तो दूसरे दिन माँ-बाप, स्कूल में हंगामा खड़ा कर देते है। हमारे शास्त्रें ने कहा है कि, ‘‘सुखार्थी कुतो न विद्या’’ अर्थात सुख के उपभोग से विद्या कभी प्राप्त नहीं होती और यही वह जगह है जहां पर माँ-बाप ने कुछ गलती कर दी होती है।
science और technology बहुत ही अच्छी चीज है, हमे उसका उपयोग करना ही चाहिये पर कौनसी चीज का कब उपयोग करना है वो समझ आना भी जरुरी है।
चलो अब वो सब बाते न करते हुए सीधो विषय पर आ जाते है।
भारतीय संस्कृति एक ऐसी महान संस्कृति है, जिसका दुनिया में कोई मोल है ही नहीं। हमारे वेद-उपनिषद् और भगवदगीता ने मनुष्य को जन्म के साथ ही मृत्यु तक जो जीवन जीना है उन सब चीजों के लिये अलग-अलग उपाय दिये हुये हैं। आज हम या हमारा बच्चा भारतीय होने के बावजूद संस्कृत नहीं जानते, पर कनाडा की 10 विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ायी जाती है। US और UK में लोग संस्कृत में पीएचडी (P.hd) करते है तब वह हमारी संस्कृति पर रिसर्च करने का आग्रह रखते है। इसका सीधा सा मतलब है की हमारी संस्कृति में विभिन्नता है, पर हमें उसका पता नहीं है।
इस पुस्तक के माध्यम से हमने एक प्रामाणिक प्रयत्न किया है कि आज की जो common समस्या है, पति-पत्नी के सम्बन्धा और माँ-बाप का पुत्र-पुत्री के साथ व्यवहार, जिसे हम संस्कारों की मूलभूत बात भी कह सकते है, उसको वेद-उपनिषद की ही बातों को थोडा सरल करके सामान्य व्यक्ति समझ सके और उसका उपयोग करके, अपने घर को ‘‘धान्यो गृहस्थाश्रम’’ कर सके।
इस पुस्तक में प्रारंभिक सात संस्कारों का विवरण है। लग्न और उनके बाद गृहस्थ जीवन कैसे आसानी से _षि के बताये मार्ग पर जी सके उनका विवरण किया है। संस्कृत भाषा बोलनी थोडी सी मुश्किल तो है, पर हमे हमारे संसार को उत्कृष्ट बनाना है तो थोड़ी कठिनाईयां उठानी पड़ेगी।
हमारे वेद-उपनिषद् ऐसे है कि अगर हम शक किये बिना उनका पालन करें और उनके बताये मार्ग पर चलना शुरू करें तो आने वाली हजारों तकलीफ़ों से हम आसानी से बच सकते हैं।
इस पुस्तक का नाम ‘‘नचिकेत’’ इसलिए रखा गया है क्योंकि हमारे वेद और उपनिषद में नचिकेत पात्र को कई जगहों पर अंकित किया गया है। जो पात्र एक अद्भुत दैवी संतान की प्रतिकृति है। जिसको पढ़कर भी हमे ऐसा लगता है कि भगवान हमारे घर पर ऐसी संतान को जन्म देना। ‘‘नचिकेत’’ एक रूपक है, अद्भुत, अविस्मरणीय और असामान्य बालक का।
ऋषि प्रेरित मार्ग पर चलने वाले कपल की प्रतिभा सम्पन्न संतान वैदिक संस्कृति के ध्योतिर्धार बने ऐसी अपेक्षा के साथ पुस्तक की शुरुआत करते हैं।