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Live-in Relationship पर High Court की तल्ख टिप्पणी, कहा- ऐसे रिश्ते टाइमपास

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प्रयागराज, 24 अक्टूबर। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) के संबंध में अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि यह एक टाइमपास होते हैं। ऐसे संबंध में ईमानदारी और स्थिरता की कमी रहती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में इस तरह के संबंध को वैद्य ठहराया है, लेकिन 20 व 22 साल की उम्र में सिर्फ दो माह की अवधि में हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि यह जोड़ा एक साथ रहने में सक्षम होगा।

उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन रिजवी की खंडपीठ ने लिव इन पार्टनरशिप में रह रही एक अंतर धार्मिक जोड़े की पुलिस सुरक्षा की अर्जी की सुनवाई करते हुए किया है। युवक मुस्लिम है जबकि युवती हिंदू धर्म से है। कोर्ट ने पुलिस सुरक्षा की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। मुख्य रूप से कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि इस तरह के जोड़े का संबंध बिना किसी ईमानदारी के विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण मात्र है। जिंदगी गुलाबों की सेज नहीं है बल्कि जिंदगी हर जोड़ों को कठिन से कठिन परिस्थितियों और वास्तविकताओं को जमीन पर परखता है।

इस तरह के संबंध अक्सर टाइम पास, अस्थाई और नाजुक होते हैं। याचिका में संलग्न तथ्यों के अनुसार युवक पर आईपीसी की धारा 366 के तहत अपहरण के अपराध का आरोप लगाते हुए उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। आरोपी के खिलाफ शिकायत युवती की चाची ने दर्ज कराई थी। कोर्ट में बहस के दौरान याची के अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि युवती की उम्र 20 वर्ष से अधिक है, इसलिए उसे अपना भविष्य तय करने का पूरा अधिकार है।

युवती ने मुस्लिम आरोपी युवक के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए अपनी पसंद से चुना है। दूसरी तरफ सरकारी अधिवक्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम की धारा 2/3 के तहत दर्ज मुकदमे में पहले से सामना कर रहा है। वह एक रोड रोमियो और आवारा युवक है। यह यूवती का भविष्य खराब कर सकता है और जीवन भी बर्बाद कर सकता है। अंत में कोर्ट ने जांच के चरण के दौरान याची को कोई भी सुरक्षा देने से इनकार कर दिया।

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