लखनऊ। जनता दल यूनाइटेड के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव का आज रात गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया था। शरद यादव की पुत्री सुभाषिनी ने सोशल मीडिया पोस्ट में अपने पिता के निधन की जानकारी दी। 11 बार सांसद रहे और तीन अलग-अलग राज्यों (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार) की अलग-अलग सीटों से 11 बार सांसद रहे शरद यादव के लंबे राजनीतिक अनुभव के आरे में हर कोई जानना चाहता है। आइए उसे जानते हैं।
वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में वापसी कर चुकी थी और अमेठी से सांसद चुने गए थे संजय गांधी। लेकिन, दुर्घटन में उनके निधन की वजह से यह सीट खाली हुई तो तब तक सियासत से दूर रहे राजीव गांधी को राजनीति की मुख्य धारा में लाने का फैसला हो गया।
अमेठी से राजीव ने नामांकन किया। साल 1981 के उपचुनाव में चौधरी चरण सिंह ने राजीव के खिलाफ उतारा शरद यादव को। हालांकि, यह चुनाव राजीव के लिए बेहद आसान साबित हुआ और उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की। शरद का यूपी से ताल्लुक इतना भर नहीं है। वह 1989 में बदायूं सीट से सांसद चुने गए थे। जेपी आंदोलन के रणबांकुरों में शरद यादव वह चेहरा रहे जो पैदा तो एमपी में हुए, लेकिन एमपी के साथ वह यूपी और बिहार की भी राजनीति में उतना ही सक्रिय रहे। तीनों राज्यों से वह लोकसभा भी पहुंचे।
राजीव के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरने की बात पर उन्होंने एक बार कहा था कि ‘मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता था, लेकिन चौधरी साहब को ज्योतिष पर बहुत विश्वास था। ज्योतिषी ने उन्हें बताया था कि राजीव चुनाव हार जाएंगे तो इंदिरा गांधी की सरकार गिर जाएगी। इसके बाद भी जब मैं नहीं माना तो चौधरी साहब खुद लड़ने की बात कहने लगे। इसके बाद मैं चुनाव के लिए तैयार हो गया।’
- हलधर किसान का पहला सिंबल पाने वालों में थे शरद
शरद यादव पहली बार मध्य प्रदेश की जबलपुर सीट से 1974 बाई इलेक्शन में चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। यह वह दौर था जब जेपी मूवमेंट अपने चरम पर था। शरद वह पहले व्यक्ति थे, जिन्हें हलधर किसान के चुनाव निशान पर मैदान में उतारा गया था। 1977 में वह फिर इसी सीट से जीते, लेकिन जब जनता पार्टी टूटी तो वह चौधरी चरण सिंह के गुट के साथ हो लिए। चरण सिंह ने उनके लिए दूसरा प्रयोग बदायूं में किया था।
1984 में वह यहां से लड़े लेकिन प्रचंड इंदिरा लहर में हार गए। बावजूद इसके वह यहां सक्रिय रहे। मुलायम सिंह यादव ने भी यहां मोर्चा संभाला और 1989 में शरद जनता दल के टिकट पर बदायूं के सांसद चुने गए। यहां के बाद वह बिहार चले गए। शरद एनडीए के संयोजकों में थे। वह वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे, लेकिन मतभेद होने पर उन्होंने एनडीए के कार्यकारी संयोजक पद से इस्तीफा दे दिया।