नई दिल्ली, 19 नवंबर। आजादी का अमृत महोत्सव के एक भाग के रूप में, प्रगतिशील भारत के 75वें वर्ष और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम 1996 (पीईएसए) के लागू होने के 25वें वर्ष के अवसर पर, जनजातीय कार्य मंत्रालय और राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान के सहयोग से पंचायती राज मंत्रालय ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में ‘पंचायती राज मंत्रालय ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम, 1996 (पीईएसए) पर एक-दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन’ आयोजित किया।
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह, जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा, पंचायती राज मंत्रालय में राज्य मंत्री कपिल मोरेश्वर पाटिल और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने संयुक्त रूप से इस सम्मेलन का उद्घाटन किया। महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी वर्चुअल तौर पर राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल हुए और भागीदारों को संबोधित किया।
राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि छह राज्यों – आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना ने पीईएसए नियमावली को अधिसूचित किया है। शेष चार राज्यों – छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और ओडिशा को भी पीईएसए नियमावली तैयार करके जल्द ही उन्हें लागू करना चाहिए। गिरिराज सिंह ने कहा कि खुद वे और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा भी आवश्यकतानुसार इन चार राज्यों के राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों से विचार-विमर्श करेंगे। उन्होंने इन राज्यों के राज्यपालों से मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और विभागीय सचिवों के साथ बैठक करके पीईएसए नियमावली तैयार करने की पहल करने का अनुरोध किया। गिरिराज सिंह ने कहा कि पीईएसए नियमावली लागू करने वाले छह राज्यों के अनुभवों को अन्य राज्यों के साथ साझा किया जाना चाहिए।
सिंह ने कहा कि ग्राम पंचायत विकास योजना को तैयार करते समय, पंचायती राज मंत्रालय और जनजातीय कार्य मंत्रालय को कन्वर्जेंश के माध्यम से जनजातीय समुदाय के लिए विकास का एक नया मॉडल तैयार करते समय जनजातीय समुदाय की परंपराओं को ध्यान में रखते हुए उनके के लिए पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। गिरिराज सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जनजातीय क्षेत्रों के विकास के बारे में काफी गंभीर हैं। जनजातीय कार्य मंत्रालय का बजट 2013-14 के दौरान 4,000 करोड़ रुपए था, जिसे 2021-22 के दौरान बढ़ाकर 7,500 करोड़ रुपए से अधिक कर दिया गया। उन्होंने कहा कि 2013-14 के दौरान आदिवासी छात्रों को छात्रवृत्ति के तौर पर 978 करोड़ रुपए दिए जाते थे, जो अब बढ़कर 2,546 करोड़ रुपए हो गया है। इन तथ्यों से पता चलता है कि भारत सरकार जनजातीय समुदाय के दैनिक जीवन में सुधार लाने के प्रति गंभीर है। राज्य सरकारों को भी इस विषय में प्रतिबद्धता एवं गंभीरता दर्शानी चाहिए।