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तिहाड़ जेल प्रशासन की काररवाई – सुप्रीम कोर्ट में यासीन मलिक को पेश करने पर चार अधिकारी निलंबित

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नई दिल्ली, 22 जुलाई। आतंकी फंडिंग मामले के दोषी और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख यासीन मलिक को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश करने के मामले में तिहाड़ जेल अधिकारियों ने दो सहायक अधीक्षकों, एक उपाधीक्षक और एक जेल वार्डन सहित चार अधिकारियों को निलंबित कर दिया है।

दरअसल, आतंकवाद से संबंधित एक अन्य मामले में मलिक की शारीरिक उपस्थिति से न्यायाधीश हैरान रह गए थे क्योंकि उसे तिहाड़ से लाने के लिए कोई विशेष निर्देश नहीं था। मलिक इस समय तिहाड़ में बंद है और वह आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। महानिदेशक (जेल) संजय बेनीवाल ने मलिक की व्यक्तिगत उपस्थिति को संबंधित जेल अधिकारियों की चूक के लिए जिम्मेदार ठहराया था और मामले में जांच के आदेश दिए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में जताई थी नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले के बाद नाराजगी जताई थी और कहा कि यासीन को जेल से बाहर लाया जाना उच्च जोखिम वाला हो सकता था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को पत्र लिखा और कहा कि ये गंभीर सुरक्षा चिंता का मामला है। यासीन मलिक को बिना किसी आधिकारिक आदेश के सुप्रीम कोर्ट लाया गया। मलिक भाग सकता था या मारा जा सकता था।

गौरतलब है कि कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक उन कैदियों में से है, जिसे जेल में भी बेहद कड़ी सुरक्षा में रखा जाता है। मलिक को जम्मू-कश्मीर आतंकी फंडिंग मामले में दोषी ठहराया गया था। मलिक को विशेष एनआईए अदालत ने पिछले साल मई में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। मलिक ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था।

हालांकि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इस सजा से संतुष्ट नहीं है और उसने यासीन मलिक के लिए मौत की सजा की मांग करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील दायर की है। एनआईए ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि दोषी को सज सुनाते हुए ट्रायल कोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया है कि उसका अपराध राष्ट्र द्रोह की श्रेणी में आता है। इसके अलावा दोषी के कृत्य रेयरेस्ट ऑफ द रेयरेस्ट में आते है।

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