नई दिल्ली, 13 दिसम्बर। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि ‘एक देश-एक चुनाव’ कराना भारतीय जनता पार्टी की नहीं बल्कि देश के संस्थापकों की सोच थी। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी एक देश एक चुनाव का समर्थन किया था। उनका भी मानना था कि इस योजना को या तो आम सहमति या पूर्ण बहुमत वाली सरकार द्वारा क्रियान्वित किया जा सकता है। रामनाथ कोविंद ने समाचार चैनल ‘आजतक’ के एक कार्यक्रम में ये बातें कहीं।
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि चुनावों की श्रृंखला एक निर्वाचित सरकार को अपने चुनावी वादों और लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए लगभग साढ़े तीन वर्ष का समय देती है। एक साथ चुनाव कराने से सरकारों को शासन के लिए अधिक समय मिलेगा।
‘एक देश-एक चुनाव’ पर कोविंद समिति सौंप चुकी है अपनी रिपोर्ट
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता में दो सितम्बर, 2023 को एक साथ चुनाव पर उच्चस्तरीय समिति गठित की थी। समिति ने इस वर्ष की शुरुआत में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18,626 पन्नों वाली अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
संसद के इसी शीतकालीन सत्र में पेश किया जाना है विधेयक
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक साथ चुनाव की सिफारिशें को दो चरणों में कार्यान्वित किया जाएगा। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएंगे। दूसरे चरण में आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगर पालिका) किए जाएंगे। इसी परिप्रेक्ष्य में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को ‘एक देश-एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी दी थी। समझा जाता है संसद के इसी शीतकालीन सत्र के दौरान यह विधेयक सदन मे प्रस्तुत किया जाएगा।
एक साथ चुनाव पर गठित उच्चस्तरीय समिति में विपक्ष के सदस्य को लेकर कोविंद ने कहा कि पहले लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी समिति का सदस्य बनने के इच्छुक थे और चाहते थे कि सरकार उन्हें नियुक्ति पत्र भेजे। चौधरी ने पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की और समिति से हटने का फैसला किया।
32 राजनीतिक दलों ने इस विचार का समर्थन किया, 15 विरोध में थे
कोविंद ने कहा कि ‘एक देश-एक चुनाव’ पर परामर्श प्रक्रिया के दौरान 32 राजनीतिक दलों ने इस विचार का समर्थन किया। जबकि 15 ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि जब हम लोकतंत्र में हैं तो बहुमत का पक्ष लागू होना चाहिए। ये 32 दल जो इसके पक्ष में हैं, उनके विचारों को देश को स्वीकार करना चाहिए। अन्य को अपने विचार बदलने चाहिए। जो 15 दल इससे सहमत नहीं हैं, उन्हें इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए।’