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पर्थ में 39 देशों को सतर्क करके लौटे विदेश मंत्री, बिना नाम लिए चीन को सुनाई खरी-खरी

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पार्थ, 12 फरवरी। विदेश मंत्री एस जयशंकर कूटनीति की भाषा में देश की नीति को पिरोकर बिंदास बोलते हैं। विदेश सेवा के अधिकारी रहे जयशंकर का अनुभव उन्हें इसके लिए बहुत उपयुक्त बना देता है। आस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में दो दिवसीय हिंद महासागरीय देशों के सातवें सम्मेलन में 40 देशों के प्रतिनिधि एकत्र हुए थे।

इसमें विदेश मंत्री ने बिना नाम लिए चीन को खूब खरी-खरी सुनाई। उन्होंने 39 देशों को सस्ते कर्ज के जाल में न फंसने के लिए आगाह किया। उन्होंने समुद्री क्षेत्र में बढ़ रही चुनौतियों की तरफ ईशारा करते हुए कहा कि नौवहन, उड़ानों की स्वतंत्रता, संप्रभुता और सुरक्षा की चिंताएं हैं।

यह जयशंकर का भारत के पड़ोसी देश चीन पर सीधा हमला था। जयशंकर ने श्रलंका के चीन के सस्ते या अपारदर्शी कर्ज के जाल में फंसने का जिक्र किए बिना हिंद महासागर के देशों को संदेश में ही सबकुछ कह दिया। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के असमान्य संबंधों पर उनके नस्तर जैसे चुभते तंज भी इसी ओर ईशारा कर रहे हैं।

जयशंकर अपने संबोधन में संप्रभुता की रक्षा को काफी अहम स्थान दिया। समुद्री कानूनों की अवहेलना के मामलों से निपटने और लंबे समय से चली आ रही संधियों के उल्लंघन जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए हिंद महासागरीय देशों के बीच में गहरे संबंध की वकालत की। जयशंकर के इस आह्वान को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की कोशिश, दक्षिण सागर में चीन के दावे और जिबूती द्वीप पर उसके दबदबे से भी जोड़कर देखा जा रहा है।

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