मुंबई, 3 जुलाई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता अजित पवार के महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद 51 वर्षों में पहली बार एक विशिष्ट परिदृश्य बन रहा है, जब सरकार का समर्थन करने वाले विभिन्न दलों से विधायकों की संख्या 200 से अधिक हो गई है।
1972 में कांग्रेस के 222 विधायक राज्य सरकार का हिस्सा थे
राज्य विधानसभा के एक पूर्व अधिकारी ने सोमवार का यह आंकड़ा साझा करते हुए बताया कि पिछली बार 1972 में 200 से अधिक विधायक राज्य सरकार का हिस्सा थे, लेकिन उस वक्त सभी 222 विधायक कांग्रेस से थे। उन्होंने कहा कि उस वक्त सदन में सदस्यों की संख्या 270 थी।
एनसीपी के 53 में से 36 विधायकों के समर्थन का अजित गुट का दावा
हालांकि रविवार को शिंदे मंत्रिमंडल में दूसरे डिप्टी सीएम केर रूप में शपथ लेने वाले अजित पवार का समर्थन करने वाले विधायकों की वास्तविक संख्या अभी ज्ञात नहीं है, लेकिन अजित पवार के विश्वासपात्र एवं विधान पार्षद (एमएलसी) अमोल मिटकरी ने एनसीपी के 53 में से 36 विधायकों के समर्थन का दावा किया है।
मिटकरी ने दावा किया, ‘अजित पवार को और अधिक विधायक समर्थन दे रहे हैं। हम अब भी राकांपा का हिस्सा हैं। हमने दल-बदल नहीं किया है।’ यदि 36 विधायकों के समर्थन के बारे में मिटकरी के दावे को सही माना जाए, तो राज्य सरकार को समर्थन देने वाले शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित विधायकों की कुल संख्या 181 हो जाती है।
राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 105 विधायक हैं और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के 40 विधायक हैं। शिंदे-देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार को बहुजन विकास आघाड़ी के तीन विधायकों, प्रहार जनशक्ति पार्टी के दो, 13 निर्दलीय विधायकों और राष्ट्रीय समाज पार्टी तथा जन सुराज्य शक्ति पार्टी के एक-एक विधायक का भी समर्थन प्राप्त है। इस तरह, सरकार का समर्थन करने वाले विधायकों की संख्या कुल 201 है।
1990 के बाद कोई भी दल बहुमत का आंकड़ा (145) नहीं छू सका है
महाराष्ट्र विधान भवन के पूर्व प्रमुख सचिव अनंत कलसे ने कहा, ‘1990 के बाद से कोई भी राजनीतिक दल 288 सदस्यीय विधानसभा में 145 सीट (बहुमत का आंकड़ा) जीतने में कामयाब नहीं हुआ है। 1972 में कांग्रेस ने तब 222 सीटें जीती थीं, जब निचले सदन में सदस्यों की संख्या 270 थी। वर्ष 1978 के विधानसभा चुनाव से पहले विधानसभा सदन की क्षमता बढ़कर 288 हो गई।’
वर्ष 1980 में कांग्रेस को 186 और 1985 में 161 सीटें मिलीं। लंबे अंतराल के बाद भाजपा अपने बल पर सरकार बनाने के करीब पहुंची, जब 2014 के विधानसभा चुनाव में उसे 122 सीटें मिलीं। लेकिन पार्टी 2019 के चुनाव में अपना प्रदर्शन दोहरा नहीं सकी और 105 सीटों पर सिमट गई।