नई दिल्ली, 16 मई। देश में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10 फीसदी आरक्षण बरकरार रहेगा। इस क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने 103वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को बरकरार रखने वाली संविधान पीठ के फैसले के खिलाफ दायर समीक्षा याचिका मंगलवार को खारिज कर दी। भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जेबी पादरीवाला की पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने बीते वर्ष नवम्बर में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए नौकरियों और शिक्षा में 10% आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित की अगुआई वाली शीर्ष अदालत की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बहुमत के साथ फैसला सुनाया था। इसमें कहा गया कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।
EWS को लेकर एससी ने दिए थे ये तर्क
दरअसल, जस्टिस ललित सेवानिवृत्त हो चुके हैं, इसलिए समीक्षा पीठ का नेतृत्व मौजूदा सीजेआई न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ कर रहे थे। इससे पहले भी एससी ने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में EWS के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को 3-2 के बहुमत के निर्णय के आधार पर बरकरार रखा था। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि यह आरक्षण न तो भेदभावपूर्ण है, न ही संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है।
50 फीसदी की सीमा के उल्लंघन पर शीर्ष अदालत का कथन
जस्टिस महेश्वरी, जस्टिस त्रिवेदी और जस्टिस पारदीवाला ने तर्क दिया था कि रिजर्वेशन के लिए 50 फीसदी की जो लिमिट लगाई गई है, उसे पार करना बेसिक स्ट्रक्चर का उल्लंघन नहीं कहा जाएगा। बेंच ने कहा कि रिजर्वेशन के लिए 50 फीसदी की जो सीमा तय की गई है, वह फिक्स नहीं है बल्कि वह लचीली है।
गौरतलब है कि मंडल जजमेंट यानी इंदिरा साहनी से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने कहा था कि आरक्षण के लिए 50 फीसदी की सीमा है और उसे पार नहीं किया जाना चाहिए।