Site icon hindi.revoi.in

यूपी एग्जिट पोल : अखिलेश यादव को रास नहीं आ रहा गठबंधन, राहुल के बाद जयंत के साथ भी जोड़ी रही फ्लॉप

Social Share

नई दिल्ली, 8 मार्च। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अंतिम परिणाम क्या होंगे, इसका फैसला तो 10 मार्च को होगा। फिलहाल चुनाव नतीजों से पहले एग्जिट पोल के जो आंकड़े सामने आए हैं, उनके अनुसार सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर्याप्त बहुमत के साथ तीन दशक से भी ज्यादा समय बाद राज्य में लगातार दूसरी बार सरकार बनाती प्रतीत हो रही है।

2017 व 2019 की भांति इस बार भी सपा का दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा

वहीं, समाजवादी पार्टी (सपा) तमाम दावों के बावजूद इस बार भी नंबर दो पर सिमटती नजर आ रही है। शुरुआत से सपा और भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है। इसी क्रम में सपा ने रालोद समेत कई छोटी पार्टियों से गठबंधन किया था। यहां तक कि सपा प्रमुख अखिलेश अपने चाचा शिवपाल यादव की पार्टी प्रसपा को भी साथ लाए थे। लेकिन 2017 और 2019 की तरह इस बार भी अखिलेश का दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है।

रालोद समेत 5 छोटी पार्टियों से किया था तालमेल

सपा ने इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए रालोद, सुभासपा, महान दल, अपना दल (कमेरावादी) और प्रगतिशील मोर्चा से गठबंधन किया। सभी पार्टियों को सीटें भी दी गईं। लेकिन एग्जिट पोल के आंकड़े सपा की उम्मीदों के विपरीत आए हैं उसे इस बार भी नंबर दो की पार्टी के तौर पर संतोष करना पड़ सकता है।

वोट प्रतिशत के साथ सीटें भी बढ़ रहीं, लेकिन सरकार बनाने के लिए पार्यप्त नहीं

इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया के सर्वे में भाजपा को 288-326 सीटें मिलती दिख रही हैं तो सपा 71-101 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है। यानी 2017 की तुलना में अखिलेश यादव की सीटों में इजाफा होता नजर आ रहा है। पिछली बार सपा को 47 सीटें मिली थीं। वहीं, वोट प्रतिशत भी 22 से 36% होने का अनुमान है।

लगातार दूसरी बार फेल हुआ गठबंधन फॉर्मूला

ज्ञातव्य है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस से गठबंधन किया था। राहुल गांधी और अखिलेश यादव कई मौकों पर साथ प्रचार करने भी पहुंचे थे। रैलियों में भीड़ भी काफी हुई थी। लेकिन दोनों पार्टियों का वोट आपस में कन्वर्ट नहीं हो सका था। यही वजह थी कि सपा 2012 की 224 सीटों की तुलना में सिमट कर 47 पर आ गई थी। वहीं, कांग्रेस की सीटें 28 से कम होकर सात रह गई थीं।

लोकसभा चुनाव 2019 में बसपा से दोस्ती भी फ्लॉप रही

वर्ष 2017 की असफलता के बाद सपा ने 2019 लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा। अखिलेश और मायावती एक मंच से प्रचार भी करने पहुंचे थे। लेकिन सपा और बसपा के वोट भी एक दूसरे को मजबूती नहीं दे सके। नतीजा यह हुआ कि लोकसभा में सपा सिर्फ पांच और बसपा 10 सीटों पर सिमट गई थी। हालांकि, 2014 की तुलना में बसपा को गठबंधन का फायदा मिला था। 2014 में बसपा का खाता भी नहीं खुल सका था वहीं 2019 में गठबंधन के बल पर उसे 10 सीटें मिल गई थीं। लेकिन जबकि सपा को कोई फायदा नहीं मिला था।

सपा कभी भी गठबंधन सहयोगियों के पूरे वोट कन्वर्ट नहीं करा सकी

उल्लेखनीय है कि 2012 में सपा को 29.2% और कांग्रेस को 11.6% वोट मिले थे। तब दोनों पार्टियां अलग अलग चुनाव लड़ी थीं। लेकिन 2017 में दोनों पार्टियों ने साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा। लेकिन सपा को 22% और कांग्रेस को 6.3% वोट मिला। यानी दोनों पार्टियों का पूरा वोट कन्वर्ट नहीं हुआ।

फिर 2014 लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा अलग अलग चुनाव लड़ी थीं। तब सपा को 22.3% जबकि बसपा को 19.8% वोट मिला था। वहीं, 2019 में जब दोनों साथ आकर लड़ी तो बसपा को 19.4%, सपा को 18.1% वोट मिला। यानी दोनों पार्टियों का वोट एक साथ गठबंधन को नहीं मिला।

Exit mobile version