नई दिल्ली, 30 अगस्त। एक हालिया अध्ययन में पता चला है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि यदि दिल्ली में प्रदूषण का वर्तमान स्तर बना रहता है तो इसके निवासियों के जीवन से औसतन 11.9 वर्ष कम हो जाएंगे।
अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान द्वारा जारी वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (AQLI) ने यह खुलासा किया है कि भारत के 1.3 बिलियन (13 करोड़) लोगों में से सभी ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां वार्षिक औसत कण प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित 5 μg/m3 सीमा से अधिक है। भारत की 67.4 फीसदी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है, जो देश की अपनी राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक 40 μg/m3 से अधिक हैं।
इस अध्ययन में यह भी खुलासा हुआ है कि महीन कण वायु प्रदूषण (PM2.5) औसत भारतीयों के जीवन को 5.3 साल कम कर देता है। शोध के अनुसार, दिल्ली में यदि वर्तमान प्रदूषण के स्तर इसी तरह से बना रहता है तो इसके 18 मिलियन (1.8 करोड़) निवासियों के जीवन एक्सपेंटेंसी औसतन WHO सीमा के सापेक्ष 11.9 साल और राष्ट्रीय दिशानिर्देश के सापेक्ष 8.5 साल कम हो जाएंगे।
इन 6 देशों पर वायु प्रदूषण का सर्वाधिक प्रभाव
अर्थशास्त्र में मिल्टन फ्रीडमैन प्रतिष्ठित सेवा प्रोफेसर और AQLI के निर्माता माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा, ‘वैश्विक जीवन एक्सपेंटेंसी पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का तीन-चौथाई हिस्सा केवल छह देशों – बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, चीन, नाइजीरिया और इंडोनेशिया में होता है, जहां एक से अधिक लोग छह साल की उम्र में अपनी जान गंवाते हैं क्योंकि वे सांस लेते हैं।’
सबसे कम प्रदूषित पठानकोट में भी कण प्रदूषण WHO की सीमा से 7 गुना अधिक
स्टडी के अनुसार, ‘इस क्षेत्र के सबसे कम प्रदूषित जिले – पंजाब के पठानकोट में भी कण प्रदूषण WHO की सीमा से सात गुना अधिक है, जो वर्तमान स्तरों के बने रहने पर जीवन एक्सपेंटेंसी को 3.1 साल कम कर देगा।’ शोध की अगर मानें तो दिल्ली एक बहुत प्रदूषित शहर है और इसके निवासियों को वायु प्रदूषण के कारण जीवन एक्सपेंटेंसी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खोने का जोखिम है।