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शीतकालीन सत्र : माकपा सांसद ने राज्यसभा में पेश किया राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक, ‘आप’ ने किया विरोध

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नई दिल्ली, 10 दिसम्बर। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) सांसद विकास रंजन भट्टाचार्य ने राज्यसभा में उच्च न्यायिक सेवाओं (सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट) में जजों की नियुक्ति को लेकर प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक पेश किया। यह बिल सरकार की ओर से सदन में नहीं लाया गया है, बावजूद उसके आम आदमी पार्टी (आप) ने सदन के समक्ष कॉलेजियम सिस्टम की वकालत की और उसके मौजूदा स्वरूप की तारीफ करते हुए इस विधेयक का विरोध किया।

आप‘ सांसद राघव चड्ढा ने की कॉलेजियम सिस्टम की तारीफ

‘आप’ सांसद राघव चड्ढा ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक आयोग तीन बार साल 1993, 1998 और 2016 में सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन रहा है। उन्होंने कहा, ‘तीनों ही बार सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता का हवाला देते हुए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग को खारिज कर दिया था। हम एक संवैधानिक रूप से सही करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं। मुझे लगता है कि जजों की नियुक्ति का सिस्टम (कॉलेजियम सिस्टम) बहुत अच्छा काम कर रहा है। इसलिए मैं इस विधेयक का विरोध करने के लिए खड़ा हुआ हूं, जिसे मेरे माननीय सहयोगी सांसद बिकाश रंजन भट्टाचार्य ने सदन में पेश किया है।’

भाजपा समेत अन्य विपक्षी दलों ने ध्वनि मत से विधेयक का स्वागत किया

वहीं दूसरी ओर सांसद भट्टाचार्य द्वारा सदन में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक 2022 को पेश करने के लिए सत्ताधारी भाजपा समेत अन्य विपक्षी दलों ने ध्वनि मत से स्वागत किया। भट्टाचार्य ने बिल पेश करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य राष्ट्रीय न्यायिक आयोग द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के साथ-साथ उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और अन्य न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया और उनकी नियुक्ति को पारदर्शी बनाया जा सकेगा।

उन्होंने कहा यदि यह विधेयक संसद से पास हो जाता है तो वह जजों की नियुक्ति के साथ उनके तबादलों को भी न्यायिक मानकों के आधार पर निर्धारित करेगा और इससे न्यायाधीशों की जवाबदेही बढ़ेगी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों के कथित दुर्व्यवहार या अक्षमता जैसे गंभीर प्रश्न पर विश्वसनीय तंत्र स्थापित होगा। यह विधेयक कानून की शक्ल लेने के बाद अदालतों में जजों की निष्पक्ष और पारदर्शी नियुक्ति के लिए बेहद कारगर होगी।

वहीं राघव चड्ढा ने बिल का विरोध करते हुए कहा, ‘हमें कोई नई प्रक्रिया अपनाने से पहले कॉलेजियम सिस्टम में सुधार की गुंजाइश को तलाशना चाहिए, जो न्यायपालिका से बातचीत के जरिए आसानी से की जा सकती है। हमें केंद्र सरकार को कोई हथकंडा नहीं देना चाहिए ताकि वे जजों की नियुक्ति में अपनी दखलंदाजी को बढ़ावा दे।’