नई दिल्ली, 20 जुलाई। दिल्ली में ‘ग्रुप-ए’ के अधिकारियों के तबादले व पदस्थापन को लेकर केंद्र के 19 मई के अध्यादेश को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर अब उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी।
शीर्ष अदालत ने खारिज की दिल्ली सरकार की दलील
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की यह दलील खारिज कर दी कि इस विषय को संविधान पीठ के पास भेजने की जरूरत नहीं है क्योंकि ‘इसके लंबित रहने के दौरान पूरी प्रणाली पंगु हो जाएगी।’ शीर्ष न्यायालय ने पहले ही संकेत दिया था कि वह केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका पर निर्णय के लिए विषय को संविधान पीठ के पास भेजने पर विचार कर रहा है।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद वृहद पीठ इस पर कार्यवाही शुरू करेगी। इस अनुच्छेद के तहत पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘हम इसे संविधान पीठ के पास भेजेंगे और 370 (अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के अनुरोध वाली याचिकाओं) पर सुनवाई समाप्त करने के बाद आपको (पक्षों-दिल्ली सरकार तथा केंद्र को) हमारे पास आने की छूट देंगे। हम आज शाम आदेश (न्यायालय की वेबसाइट पर) अपलोड करेंगे…इस बीच दलीलें पूरी करनी होंगी।’
पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के दौरान अध्यादेश के संबंध में कहा कि इसने दिल्ली सरकार से तबादलों व पदस्थापन पर नियंत्रण छीन लिया है। न्यायालय ने कहा कि संविधान राज्य सूची की तीन प्रविष्टियों – पुलिस, कानून व्यवस्था और भूमि को दिल्ली सरकार के नियंत्रण से बाहर रखता है।
पीठ ने कहा, ‘आपने (केंद्र ने) प्रभावी रूप से यह किया है कि संविधान कहता है कि तीन प्रविष्टियों को छोड़कर दिल्ली विधानसभा के पास अन्य शक्तियां है। लेकिन, अध्यादेश (राज्य सूची की) प्रविष्टि 41 (सेवाओं) को भी छीनता है। यह अध्यादेश की धारा 3ए का प्रभाव है।’
एलजी के वकील हरीश साल्वे बोले – संसद को कानून बनाने की शक्ति
उप राज्यपाल वी के सक्सेना की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश के लिए राज्य सूची, समवर्ती सूची हो गई है और इसलिए संसद को इस पर कानून बनाने की शक्ति है। उन्होंने दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त 437 स्वतंत्र परामर्शदाताओं की उप राज्यपाल के आदेश के माध्यम से बर्खास्तगी को उचित करार दिया।
मामला संविधान पीठ के पास भेजने की जरूरत नहीं थी – अभिषेक मनु सिंघवी
वहीं, दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि संविधान पीठ को यह मामला भेजने की जरूरत नहीं थी क्योंकि विषय पर तीन न्यायाधीशों की पीठ फैसला कर सकती है। उन्होंने कहा कि अध्यादेश ने संविधान के अनुच्छेद 239एए (जो दिल्ली से संबंधित विशेष प्रावधानों से संबद्ध है) का उल्लंघन किया है क्योंकि इसने निर्वाचित सरकार की शक्ति कमतर की है। उन्होंने दलील दी कि मामले को संविधान पीठ के पास भेजने से पूरी प्रणाली पंगु हो जाएगी। उन्होंने दिल्ली सरकार की याचिका पर शीघ्र सुनवाई का आग्रह किया।
अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि विषय को संविधान पीठ के पास भेजने का फैसला पूरी तरह से तीन न्यायाधीशों की पीठ के अधिकार क्षेत्र में आता है। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता केंद्र की ओर से पेश हुए।
केंद्र ने 19 मई को जारी किया था दिल्ली अध्यादेश
केंद्र ने 19 मई को दिल्ली में ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के स्थानांतरण और पदस्थापन के लिए एक प्राधिकरण बनाने के वास्ते ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023’ जारी किया था। वहीं दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने इसे सेवाओं पर नियंत्रण पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के साथ ‘छलावा’ करार दिया था।