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कांग्रेस का आरोप- आरएसएस ने संविधान को कभी पूरी तरह स्वीकार नहीं किया

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नई दिल्ली, 27 जून। कांग्रेस ने संविधान की प्रस्तावना में ‘‘समाजवादी’’ और ‘‘धर्मनिरपेक्ष’’ शब्दों की समीक्षा करने संबंधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के बयान को लेकर शुक्रवार को दावा किया कि आरएसएस ने भारतीय संविधान को कभी भी पूरी तरह स्वीकार नहीं किया।

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का पूरा प्रचार अभियान भी संविधान बदलने पर केंद्रित था, लेकिन जनता ने इसे खारिज कर दिया।

रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, “आरएसएस ने कभी भी भारत के संविधान को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। इसने 30 नवंबर, 1949 के बाद से डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू और इसके निर्माण में शामिल अन्य लोगों पर निशाना साधा। आरएसएस के अपने शब्दों में संविधान मनुस्मृति से प्रेरित नहीं था।”

उन्होंने दावा किया कि आरएसएस और भाजपा ने बार-बार नए संविधान का आह्वान किया है। रमेश ने कहा, “2024 के लोकसभा चुनाव में यही प्रधानमंत्री मोदी का चुनावी नारा था। लेकिन भारत की जनता ने इस नारे को निर्णायक रूप से खारिज कर दिया। फिर भी, संविधान के मूल ढांचे को बदलने की मांग लगातार आरएसएस के तंत्र द्वारा की जाती रही है।

उन्होंने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले की प्रति साझा करते हुए कहा, “भारत के प्रधान न्यायाधीश ने स्वयं 25 नवंबर, 2024 को उसी मुद्दे पर एक फैसला सुनाया था, जिसे अब एक प्रमुख आरएसएस पदाधिकारी द्वारा फिर से उठाया जा रहा है। क्या वे कम से कम उस फैसले को पढ़ने का कष्ट करेंगे?”

आपातकाल पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था, ‘‘बाबासाहेब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द कभी नहीं थे। आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका पंगु हो गई थी, तब ये शब्द जोड़े गए।’’

उन्होंने कहा था कि इस मुद्दे पर बाद में चर्चा हुई लेकिन प्रस्तावना से उन्हें हटाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। होसबोले ने कहा, ‘‘इसलिए उन्हें प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं, इस पर विचार किया जाना चाहिए।’’

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