नई दिल्ली, 16 अक्टूबर। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की तैयारी पूरी हो चुकी है। दो वरिष्ठ नेताओं – मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच सोमवार को होने वाले मुकाबले से यह तय हो जाएगा कि पार्टी के तकरीबन 137 वर्षों के इतिहास में छठी बार कौन कमान संभालेगा। इसके साथ ही सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनाव न लड़ने पर 24 वर्षों बाद गांधी परिवार के बाहर का कोई व्यक्ति कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा।
मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर आमने-सामने
आमने-सामने की लड़ाई में मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर ने प्रदेश कांग्रेस समिति (पीसीसी) के 9,000 से अधिक ‘डेलीगेट्स’ (निर्वाचित मंडल के सदस्य) को लुभाने के लिए विभिन्न राज्यों का दौरा किया और समर्थन जुटाने की कोशिश की। हालांकि परिणाम के बारे में पहले से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि थरूर के मुकाबले खड़गे को ज्यादा डेलीगेट्स का समर्थन हासिल है। सोमवार के मतदान के बाद बुधवार को परिणाम घोषित किया जाएगा।
खड़गे ‘अनाधिकारिक रूप से आधिकारिक उम्मीदवार’ माने जा रहे
खड़गे को इस पद के लिए पसंदीदा तथा ‘अनाधिकारिक रूप से आधिकारिक उम्मीदवार’ माना जा रहा है और बड़ी संख्या में वरिष्ठ नेता उनका समर्थन कर रहे हैं जबकि थरूर ने अपने आप को बदलाव लाने वाले उम्मीदवार के तौर पर पेश किया है। थरूर ने अपने प्रचार के दौरान असमान मुकाबला होने के मद्दे को उठाया है जबकि दोनों उम्मीदवारों और पार्टी ने कहा है कि गांधी परिवार निष्पक्ष है और कोई ‘आधिकारिक उम्मीदवार’ नहीं है।
कांग्रेस के इतिहास में अध्यक्ष पद के लिए छठा चुनाव
चुनाव की महत्ता के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस की संचार इकाई के प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘यह असल में छठी बार है कि कांग्रेस के 137 वर्षों के इतिहास में अध्यक्ष पद के लिए आंतरिक रूप से चुनाव हो रहा है। मीडिया ने 1939, 1950, 1997 और 2000 का उल्लेख किया है, लेकिन 1977 में भी चुनाव हुए थे, जब कासू ब्रह्मानंद रेड्डी निर्वाचित हुए थे।’
जयराम रमेश ने चुनाव से जताई असहमति
जयराम रमेश ने कहा कि उनका हमेशा से ऐसे पदों के लिए आम सहमति बनाने के कांग्रेस के मॉडल में विश्वास रहा है। उन्होंने कहा कि नेहरू युग के बाद इस रुख को के. कामराज ने मजबूत किया था। उन्होंने विस्तारपूर्वक जानकारी दिए बगैर कहा, ‘जब कल हमारे सामने चुनावी दिन होगा तो यह विश्वास और मजबूत हो जाएगा। इसके कारण काफी स्पष्ट हैं।’
‘संगठन की मजबूती के लिए संगठनात्मक चुनाव की धारणा से मैं संतुष्ट नहीं‘
उन्होंने कहा, ‘मैं इस बात से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हूं कि संगठनात्मक चुनाव वास्तव में किसी भी तरीके से संगठन को मजबूत करते हैं। इससे व्यक्तिगत उद्देश्यों की पूर्ति हो सकती है, लेकिन सामूहिक भावना का निर्माण करने में इनका महत्व संदेह के घेरे में हैं। फिर भी चुनाव होने का अपना महत्व है। लेकिन मैं इन्हें ऐतिहासिक भारत जोड़ो यात्रा के मुकाबले कम संस्थागत महत्व का मानता हूं, जो भारतीय राजनीति के लिए भी कांग्रेस की परिवर्तनकारी पहल है।’