नई दिल्ली, 5 सितंबर। पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने राज्यसभा के सभापति के रूप में उनके कार्यकाल को याद किया और बताया कि कैसे वह सरकार और विपक्ष दोनों के प्रति निष्पक्ष थे। रमेश ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि आज शिक्षक दिवस है, जो सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के 20वीं सदी के सबसे महान शिक्षकों में से एक के जन्मदिन के रूप में हर साल मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षक संघ के अनुरोध के जवाब में 1962 से पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘दशकों तक डॉ राधाकृष्णन को सही अर्थों में एक सच्चे विश्वगुरु के रूप में देखा गया।’’ रमेश ने याद किया कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ख्याति प्राप्त दार्शनिक और भारतीय दर्शन (1923 और 1927), द हिंदू व्यू ऑफ लाइफ (1927), ईस्टर्न रिलीजन एंड वेस्टर्न थॉट (1939), द भगवद गीता (1948), द धम्मपद (1950), द प्रिंसिपल उपनिषद (1953) जैसी कई और अन्य लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक भी थे।
उन्होंने कहा, ‘‘वह एक प्रोफेसर, कुलपति, तत्कालीन सोवियत संघ (यूएसएसआर) में राजदूत और भारत के उपराष्ट्रपति एवं राष्ट्रपति रहे।’’ कांग्रेस नेता और राज्यसभा के सदस्य रमेश ने कहा कि उपराष्ट्रपति के रूप में वह राज्यसभा के सभापति भी रहे। उन्होंने कहा, ‘‘16 मई, 1952 को पहले ही दिन राज्यसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि मैं किसी पार्टी से नहीं हूं और इसका मतलब है कि मैं किसी पार्टी से नहीं हूं।’’
रमेश ने कहा, ‘‘उनकी आधिकारिक जीवनी में सभापति के रूप में उनके कार्यकाल के बारे में लिखा गया है कि वह ‘सरकार और विपक्ष के बीच पूरी तरह से निष्पक्ष रहते थे। आवश्यकता पड़ने पर, प्रधानमंत्री को भी डांट लगाने या शुचिता का उल्लंघन करने पर उनकी टिप्पणियों को हटाने में संकोच नहीं करते थे।’’
कांग्रेस महासचिव ने कहा, ‘‘उन्होंने गरिमा, विशिष्ट शैली और हास्य विनोद के साथ, निष्पक्ष एवं उचित निर्णयों के उच्च मानक स्थापित किए।’’ रमेश की यह टिप्पणी हाल ही में संसद के दोनों सदनों में सभापति और विपक्षी सांसदों के बीच बार-बार हुए गतिरोध की पृष्ठभूमि में आई है।